
नैनीताल उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रुड़की छावनी क्षेत्र स्थित बंगाल इंजीनियरिंग ग्रुप एंड सेंटर (बीईजी केंद्र) द्वारा दायर एक आपराधिक याचिका खारिज करते हुए, ग्रामीणों के पक्ष में फैसला सुनाया है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ में हुई। मामले के अनुसार रुड़की के भांगेरी गाँव के निवासियों और बीईजी केंद्र के बीच लंबे समय से रास्ते का विवाद चल रहा है। यहां बी ई जी ने केंट से जाने वाले रास्ते मे गेट लगा दिया था। लेकिन न्यायालय ने माना कि विवादित खसरा संख्या 710 राजस्व रिकॉर्ड में एक “गौहर रास्ता” (सार्वजनिक रास्ता) के रूप में दर्ज है, और इस पर लोगों के आवागमन को बाधित करना सही नहीं है। याचिका बीईजी केंद्र द्वारा अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, हरिद्वार के 30 मई 2023 के फैसले और उप जिलाधिकारी रुड़की के 26 जुलाई 2022 के आदेश को चुनौती देने के लिए दायर की गई थी। एसडीएम ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 के तहत कार्रवाई करते हुए बी ई जी, को सार्वजनिक रास्ते से गेट हटाने का निर्देश दिया था। बीईजी केंद्र का दावा था कि पूरी विवादित भूमि ‘ए-1 डिफेंस लैंड’ का हिस्सा है और इसका उपयोग सैन्य प्रशिक्षण के लिए होता है, इसलिए नागरिकों का प्रवेश प्रतिबंधित है।
बीईजी केंद्र के वकील ने तर्क दिया था कि सिविल कोर्ट पहले ही इस भूमि पर ग्रामीणों के अधिकारों को खारिज कर चुका है, और एसडीएम को धारा 133 के तहत स्वामित्व के मुद्दे को फिर से खोलने का अधिकार नहीं है। उनका यह भी कहना था कि ग्रामीणों को पहले ही दो वैकल्पिक सड़कें उपलब्ध कराई गई हैं। वहीं, राज्य और ग्रामीणों के वकीलों ने जोर दिया कि खसरा संख्या 710 (रकबा 0.3590 हेक्टेयर) उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 की धारा 132 के तहत “गौहर रास्ता” के रूप में दर्ज है और इसका वर्गीकरण कभी नहीं बदला गया।
न्यायमूर्ति पुरोहित ने दोनों पक्षों के तर्कों और रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों पर विचार करने के बाद माना कि विवादित खसरा संख्या 710 अभी भी राजस्व रिकॉर्ड में सार्वजनिक रास्ते के रूप में दर्ज है और सेना यह साबित करने के लिए कोई विश्वसनीय सामग्री पेश नहीं कर पाई कि उसने इस भूमि को वैध प्रक्रिया द्वारा अधिग्रहित किया है या इस पर नागरिकों के आवागमन से कोई तत्काल सुरक्षा खतरा है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बीईजी केंद्र द्वारा पूर्व में दायर मुकदमों कल्लू सिंह बनाम भारत संघ) का संबंध एक जल नहर मार्ग से था, जिसका वर्तमान विवादित मार्ग से कोई लेना-देना नहीं है। साथ ही, आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार कुल 648.90 एकड़ अधिग्रहित रक्षा भूमि के बाहर ही विवादित खसरा संख्या 710 स्थित है। इन परिस्थितियों में, न्यायालय ने माना कि एसडीएम ने सार्वजनिक मार्ग पर निर्बाध पहुंच सुनिश्चित करने के लिए अपने क्षेत्राधिकार के भीतर कार्य किया। इस आधार पर हाईकोर्ट ने बी ई जी की याचिका को खारिज कर दिया है।