आज 15 नवंबर, ‘जनजातीय गौरव दिवस’ पर, हम इतिहास के उस महानायक को स्मरण कर रहे हैं जिन्होंने ‘वंचितों की सशक्त अभिव्यक्ति’ की लौ को अपने संघर्ष से प्रज्वलित किया था। यह दिन महान क्रांतिकारी, जननायक और समाज सुधारक ‘धरती आबा’ यानी बिरसा मुंडा की जयंती का है। ‘वंचित स्वर’ परिवार उस महान विचारक और योद्धा को कोटि-कोटि नमन करता है, जिनका जीवन और संघर्ष आज भी हमारे लिए तार्किक और प्रासंगिक प्रेरणा का स्रोत है।
बिरसा मुंडा का जीवन काल भले ही मात्र 25 वर्ष का रहा हो, लेकिन उनका ‘उलगुलान’ (महान विद्रोह) शोषण, अन्याय और औपनिवेशिक दासता के खिलाफ एक ऐसा संगठित विद्रोह था, जिसने दमनकारी सत्ताओं की नींव हिला दी। उन्होंने उस समय के सबसे दबे, कुचले और शोषित आदिवासी समाज को न केवल संगठित किया, बल्कि उन्हें उनके ‘जल, जंगल और जमीन’ के मौलिक अधिकारों के लिए सचेत और लामबंद किया।
उनका संघर्ष केवल राजनीतिक आज़ादी का नहीं था; यह सांस्कृतिक अस्मिता, सामाजिक आत्म-सम्मान और आर्थिक स्वावलंबन का भी संघर्ष था। एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो, बिरसा मुंडा ने अपने समाज की पीड़ा के मूल कारणों—संसाधनों का दोहन और बाहरी शक्तियों द्वारा किया जा रहा विस्थापन—की सटीक पहचान की।
आज, जब हम ‘जय संविधान जय भारत’ के उद्घोष के साथ संवैधानिक, अधिकार-आधारित पत्रकारिता के मार्ग पर चल रहे हैं, तो बिरसा मुंडा का जीवन हमें एक स्पष्ट दृष्टि देता है। ‘वंचित स्वर’ का भी यह मूल मिशन रहा है कि हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए एक मंच प्रदान किया जाए और उनकी आवाज़ को नीति-निर्माताओं तक पहुँचाया जाए।
बिरसा मुंडा का ‘उलगुलान’ हमें सिखाता है कि अन्याय के खिलाफ एक तार्किक, संगठित और जागरूक अभिव्यक्ति कितनी शक्तिशाली हो सकती है। आज हमारा ‘उलगुलान’ किसी हथियार से नहीं, बल्कि भारत के संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों, सूचना के अधिकार (RTI) और कलम की ताकत से है।
‘वंचित स्वर’ का मानना है कि बिरसा मुंडा का सच्चा सम्मान केवल उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करना नहीं है, बल्कि उनके द्वारा दिखाए गए तर्क और चेतना के रास्ते पर चलना है। इसका अर्थ है, समाज के अंतिम व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक होना और यह सुनिश्चित करना कि विकास की धारा में कोई भी ‘वंचित’ पीछे न छूटे।
आज ‘जनजातीय गौरव दिवस’ पर, हम यह संकल्प लें कि हम बिरसा मुंडा के सपनों का भारत—एक समतामूलक, न्यायपूर्ण और शोषण मुक्त समाज—बनाने के लिए संवैधानिक दायरे में रहकर अपनी अभिव्यक्ति को और सशक्त करेंगे। हम उस सामाजिक न्याय की परियोजना को आगे बढ़ाएंगे, जिसके लिए ‘धरती आबा’ ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।
किशोर ह्यूमन
(पिथौरागढ़)

