कोटद्वार पौड़ी 20वीं सदी के प्रारम्भ में आज ही के दिन 12 मई 1912 को जनपद पौड़ी गढ़वाल के विकास खंड दुगड्डा में स्थित उमथ गाँव में एक साधारण शिल्पकार कृषक दौलत सिंह व विशेश्वरी देवी के घर एक पुत्र का जन्म हुवा जिसे आगे चलकर एक क्रांतिकारी समाज सुधारक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व जनप्रिय राजनेता बलदेव सिंह आर्य के रूप में पहचान मिली। बचपन से ही बलदेव सिंह अपने हमउम्र बच्चों से अलग प्रवर्ति के थे, तत्कालीन समय में आर्य समाज के गढ़वाल में प्रभाव का असर उनके परिवार पर भी पड़ा आर्य समाज की शिक्षाओं से बालक बलदेव सिंह के विचारों में राष्ट्र व समाज के लिये कुछ कर गुजरने की भावना अंकुरित होने लगी। उन्होंन अपने नाम के साथ आर्य शब्द जोड़ लिया औऱ वे बलदेव सिंह आर्य के नाम से पहचाने जाने लगे। 1930 में जब बलदेव सिंह आर्य की उम्र महज 18 वर्ष की थी तब वे गांधी व कांग्रेस से प्रेरित होकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े, 18 साल की उम्र में सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने व सरकार के खिलाप राजद्रोआत्मक भाषण देन पर अंग्रेज सरकार ने उन्हें कैद कर लिया व उन्हें 18 महीने की जेल हुई। 1932 में यमकेश्वर में जनता को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलित करने पर उन्हें पुनः 6 महीने का कठोर कारावास हुवा। उन दिनों उत्तराखंड के मूलनिवासी शिल्पकार समाज के साथ गैरबराबरी का ब्यवहार आम बात थी उनके मानवीय अधिकारों पर सवर्ण समाज की बंदिशे थी ये वर्ग अशिक्षा, गरीबी ,भूमिहीन अवस्था में समाज की मुख्य धारा से बिल्कुल अलग दुर्दिन काट रहा था, बलदेव सिंह आर्य ने एक तरफ स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया वंही दूसरी ओर उन्होंने लाखों शिल्पकारों के अंधकारमयी जीवन में उजाला लाने का संकल्प लिया। आर्य ने स्थानीय स्तर पर जयानंद भारतीय व राष्ट्रीय स्तर पर गांधी के नेतृत्व में गढ़वाल में दलितोद्धार के लिये समर्पित भाव से काम किया आपने शिल्पकारों के स्वाभिमान, उनके मानवीय अधिकारों की प्राप्ति के लिये दशकों डोला-पालकी जैसे ऐतिहासिकता आंदोलन का नेतृव किया। आर्य के समर्पण उनकी कार्यशैली ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर गाँधी ,नेहरू जैसे चोटी के नेताओं का प्रिय बना दिया था उनकी पहचान उत्तराखंड के होनहार युवा नेता के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर होने लगी, यही वजह है कि देश की आजादी के बाद पहली प्रोविजन पार्ल्यामेंट 1950 में बनी जिसके लिये उन्हें गढ़वाल से पहले सांसद होने का गौरव प्राप्त हुवा, 1950 से 52 तक संविधान निर्माण सभा के सदस्य भी रहे।
1952 में हुये विधानसभा चुनाव में आप गढ़वाल सीट से विधायक बनकर उत्तरप्रदेश की विधानसभा में पहुँचे, जंहा उन्होंने लगभग 3 दशकों तक कई विभागों के मंत्री के रूप में अपनी उत्कृष्ट सेवायें दी, 1992 में तत्कालीन राज्यपाल द्वारा उनके द्वारा उत्तरप्रदेश विधानसभा की 25 वर्षों से अधिक समय की सेवाओँ के लिये उनका अभिनंदन कर उन्हें मानपत्र भेंट किया गया था। 22 दिसम्बर 1992 को 80 वर्ष की उम्र में आर्य का निधन उनके लखनऊ आवास में हुवा ,उस वक्त की उत्तरप्रदेश सरकार ने उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया व उनके नाम पर लखनऊ में एक सड़क का नामकरण उनकी स्मृति में किया गया।
लेकिन दुर्भाग्य से उत्तराखंड सरकार ने अपने प्रदेश में जन्मी इस महानतम विभूति की स्मृति में उनके सम्मान में कुछ भी नही किया गया है जिसको लेकर शिल्पकार समाज के साथ ही अन्य मानवतावादी बुद्धिजीवी वर्ग में गहरा रोष नजर आता है। गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार में जंहा से 18 वर्ष की उम्र में आर्य स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे वहां पर किसी को आर्य की स्मृति की एक ईंट भी देखने को नही मिलेगी, जबकि कोटद्वार भाबर में सड़क, बिजली, सिंचाई के नहरे, स्कूल ,कॉलेज जैसे दर्जनों कार्य आर्य ने अपने कार्यकाल में पूरे करवा दिये थे, गढ़वाल का पहला नलकूप झण्डीचौड़ में आर्य ने तत्कालीन ग्राम प्रधान स्वर्गीय वेदप्रकाश के कहने मात्र से लगवा दिया था जबकि उस समय भाबर में पानी के बर्तन महिलाओं के सर से नीचे उतरते ही नही थे,बड़े खेद के साथ यंहा लिखना पड़ रहा है कि बलदेव सिंह आर्य जैसी एक महान दिब्य विभूति को वो मान सम्मान हमारी सरकारों की भेदभाव पूर्ण नीतियों के कारण अभी तक नही मिल पाया जो उन्हें मिलना चाहिये था। अंत में मैं समस्त शैलशिल्पी विकास संगठन की ओर से 20 वीं सदी के नायक बलदेव सिंह आर्य को शत शत नमन कर उन्हें उनकी 113वीं जयंती के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
प्रस्तुति-
विकास कुमार’आर्य’
प्रदेश अध्यक्ष
शैलशिल्पी विकास संगठन
मुख्यालय- कोटद्वार गढ़वाल (उत्तराखंड)

