
भारत भूमि का इतिहास अनेक चरणों से गुजरा है और इस भूभाग ने अनेक प्रकार के उतार-चढ़ाव देखे हैं यहां विश्व के सर्वोत्तम विचार धाराएं और श्रेष्ठतम विचारक व महापुरुष जन्मे हैं वहीं समय-समय पर यहां अंधविश्वास ,पाखंड, आडंबर, आतंक, शोषण, जातिवाद, अन्याय गैर बराबरी जैसी अनेकों प्रथाएं को कुव्यवस्थाएं भी अपने चरम पर रही हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि यह क्षेत्र दो विपरीत विचारधाराओं के परस्पर संघर्ष का केंद्र रहा है जहां एक समय में इसी भूमि से उपजे तथागत बुद्ध के करुणा प्रेम व न्याय के दर्शन से किसी दौर में पूरा विश्व अभिसिंचित हुआ तथा विश्व के अधिकांश देशों ने इस विचार को अपना जीवन दर्शन बनाया वही कालांतर में कई बार और आज फिर से यह देश शोषण, अन्याय, अत्याचार, भेदभाव, अंधविश्वास, आडंबर, पाखंड, रूढ़िवादिता का केंद्र बनता जा रहा है।
और जब जब यहां अंधविश्वास, आडंबर, अत्याचार, असमानता के पक्षघरों का प्रभुत्व रहा या शासन व्यवस्था रही उन्होंने यहां जन्मे महान विचारकों और उनके सिद्धांतों और विचारों पर सर्वाधिक हमला किया, उन्हें दुष्प्रचारित किया,और इन महान विचारकों के इतिहास और इनके दर्शन को नष्ट करने का कोई भी प्रयास नहीं छोड़ा और इसके लिए उन्होंने असंख्य काल्पनिक पात्रों की रचना कर मनगढ़ंत, कपोल कल्पित, चमत्कारिक, असामान्य पात्रों की रचना की और इन्हें इतना अधिक प्रचारित प्रसारित किया कि इन्हीं को अपनी आजीविका का माध्यम बना लिया तथा जनसामान्य के मनोमस्तिष्क में इन्हीं कपोल कल्पित किरदारों को परम सत्य की तरह बिठा दिया तथा देश की बहुसंख्यक आबादी तार्किक होकर कहीं इन झूठे किरदारों का परीक्षण न करने लगे इसके लिए उन्हें शिक्षा और ज्ञान से भी विमुख कर दिया।
इस प्रकार के एक नहीं अनेकों उदाहरण देखे जा सकते हैं भारत का वर्तमान इतिहास इन्हीं सब से भरा पड़ा है इसी कड़ी में एक उदाहरण देश की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के रूप में भी देखा जा सकता है क्योंकि भारत भूमि में कालांतर में फैल चुकी कुव्यवस्थाओं के कारण महिला को निम्नतम स्थान पर पहुंचा दिया गया था, कठोर धार्मिक परंपराओं रूढ़ियों और नियमों के द्वारा नारी को केवल घर की चारदीवारी में कैद कर दिया गया था “नारी नरकस्य द्वारम” और “स्त्री शूद्रों विद्या ना धीयताम” जैसी लोकोक्तियों और धार्मिक नियमों के सहारे नारी को अज्ञानता और घृणा का पात्र बना दिया गया था, पति की मृत्यु होते ही उसे जिंदा जला देना धार्मिक प्रथा बन चुकी थी, धार्मिक स्थलों में धर्म आचार्यों की हवस शांत करने के लिए उसे देवदासी बना दिया गया था, एक पुरुष असंख्य स्त्रियों से विवाह कर ले यह बात सामान्य थी, पिता या दादा तुल्य उम्र के व्यक्ति से विवाह करना सामान्य बात थी, 5 से 10 साल वर्ष की उम्र की बालिकाओं का विवाह कर देने के नियम प्रचलित थे।
जिससे एक महिला, एक स्त्री, एक बालिका के जीवन स्तर का तत्कालीन दौर में अंदाजा लगाया जा सकता है, ऐसे में उसके पढ़ने पढ़ाने की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती और वह धर्म विरुद्ध भी था ऐसे दौर में महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को पढ़ाने का क्रांतिकारी निर्णय लिया जिसमें उन्हें दंड स्वरूप परिवार, समाज के साथ-साथ धर्माचार्यों के भी बहिष्कार का सामना करना पड़ा अनेक यंत्रणाओ, मुसीबतों के साथ-साथ प्राणघातक हमले भी झेलने पड़े लेकिन वे यहीं नहीं रुके, उसके पश्चात सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठा लिया जो कि और भी बड़ा युग परिवर्तनकारी निर्णय था जिसकी एवज में उन्हें गोबर, कीचड़, गालियां, उलाहना, पथराव और ना जाने क्या-क्या दंश झेलने अनेकों उदाहरण देखे जा सकते हैं भारत का वर्तमान इतिहास इन्हीं सब से भरा पड़ा है इसी कड़ी में एक उदाहरण देश की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के रूप में भी देखा जा सकता है क्योंकि भारत भूमि में कालांतर में फैल चुकी कुव्यवस्थाओं के कारण महिला को निम्नतम स्थान पर पहुंचा दिया गया था, कठोर धार्मिक परंपराओं रूढ़ियों और नियमों के द्वारा नारी को केवल घर की चारदीवारी में कैद कर दिया गया था “नारी नरकस्य द्वारम” और “स्त्री शूद्रों विद्या ना धीयताम” जैसी लोकोक्तियों और धार्मिक नियमों के सहारे नारी को अज्ञानता और घृणा का पात्र बना दिया गया था, पति की मृत्यु होते ही उसे जिंदा जला देना धार्मिक प्रथा बन चुकी थी, धार्मिक स्थलों में धर्म आचार्यों की हवस शांत करने के लिए उसे देवदासी बना दिया गया था, एक पुरुष असंख्य स्त्रियों से विवाह कर ले यह बात सामान्य थी, पिता या दादा तुल्य उम्र के व्यक्ति से विवाह करना सामान्य बात थी, 5 से 10 साल वर्ष की उम्र की बालिकाओं का विवाह कर देने के नियम प्रचलित थे।
जिससे एक महिला, एक स्त्री, एक बालिका के जीवन स्तर का तत्कालीन दौर में अंदाजा लगाया जा सकता है, ऐसे में उसके पढ़ने पढ़ाने की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती और वह धर्म विरुद्ध भी था ऐसे दौर में महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को पढ़ाने का क्रांतिकारी निर्णय लिया जिसमें उन्हें दंड स्वरूप परिवार, समाज के साथ-साथ धर्माचार्यों के भी बहिष्कार का सामना करना पड़ा अनेक यंत्रणाओ, मुसीबतों के साथ-साथ प्राणघातक हमले भी झेलने पड़े लेकिन वे यहीं नहीं रुके, उसके पश्चात सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठा लिया जो कि और भी बड़ा युग परिवर्तनकारी निर्णय था जिसकी एवज में उन्हें गोबर, कीचड़, गालियां, उलाहना, पथराव और ना जाने क्या-क्या दंश झेलने पड़े लेकिन वह रुकी नहीं उनका साथ ज्योतिबा फुले के साथ-साथ एक और महिला फातिमा शेख ने दिया और वहां से बालिकाओं के शिक्षा के द्वार खुले उनके खोले विद्यालयों ने भारत में एक नए युग का सूत्रपात कर दिया लेकिन इतना बड़ा सत्य बहुत कम लोग जानते हैं इतना भी कुछ सामाजिक संगठनों के अथक प्रयासों के कारण हो पाया है,और भारत में शिक्षा और ज्ञान के प्रतीकों के रूप में अनेक काल्पनिक पात्र रचे गए हैं जन सामान्य उन्हीं को जानता है मानता है और पूजता भी है।
एडवोकेट डा प्रमोद कुमार