घनसाली डा. बच्चनदेई की 11वीं स्मृति दिवस पर घनसाली के लोक सांस्कृतिक कर्मियों, रंग कर्मियों सामाजिक सांस्कृतिक संगठनों ने विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी विरासत की याद किया। आज कई गणमान्य व्यक्तियों ने डॉक्टर बचन देई के द्वारा उत्तराखंड की पौराणिक पारंपरिक लोक सांस्कृतिक विरासत राधाखंडी शैली को याद करते हुए कहाकि इनके द्वारा राधाखण्डी शैली को उत्तराखंड ही नही देश और विश्व स्तर पर ख्याति दिलाने के लिए जीवन भर संघर्ष के साथ प्रयास किया है। इनकी विरासत चैती गायन, राधाखंडी शैली, लोकगीत और संगीत को विभिन्न शिष्यों के द्वारा आज प्रसारित प्रसारित करने के लिए निरंतर विभिन्न विश्वविद्यालयों कल मंचों एवं विभिन्न नाट्य संस्थाओं में अपनी कला शैली का प्रदर्शन के साथ-साथ 12 शिष्यों को राधाखंडी चैती गायन भरौली आदि पर शिक्षा एवं प्रशिक्षण दिया है बच्चनदेई व उनके पति शिवचरण के द्वारा हेमंती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल के लोक संस्कृति निष्पादन केंद्र में दो वर्षों तक विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्य करते हुए 12 शिष्यों को राधाखंडी चैती गायन की पारंपरिक लोकगीतों की शिक्षा प्रदान की है आज भी वह गायन और बादन शैली में पारंगत है आपको बता दें कि यह बिरहा केवल एक ही समुदाय के पास विशेष करके बच्चनदेई एवं शिवचरण दोनों पत्नियों के पास यह विद्या थी जिसे उन्होंने विभिन्न मंचों पर प्रसार प्रसार किया है और आज भी इस शैली को सिर्फ केवल उनकी नातिन निधि दढ़ियाल ही संजय हुई है जिसको उन्होंने कम उम्र में ही 6 वर्ष की उम्र में ही लोक गायन चैती गायन मंगल और राधा खंडी संगीत की शिक्षा दी है उनकी मृत्यु वर्ष 2013 में चार नंबर को हो गई थी 2014 से स्मृति दिवस मनाने का सिलसिला शुरू हुआ है जिसको विभिन्न सामाजिक संगठनों के द्वारा सामूहिक मनाया गया। आज के इस कार्यक्रम में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष एवं वर्तमान अध्यक्ष व्यापार मंडल घनसाली डॉक्टर नरेंद्र डगवाल एवं भविष्य श्रीवाल,डॉक्टर प्रकाश चंद्र, सोहनलाल परोपकारी, सत्य प्रकाश ढोडियाल, सृष्टि, चैतिगयन लोक संगीत की जानकारी स्नातक, रुक्मिणी देवी ढौंडियाल, गंगा देवी, कृष्ण चंद्र, विकास, प्रभात, आयुष संध्या, नैन्सी अनिता देवी कई सांस्कृतिक रंगकर्मी कलाप्रेमी लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन सत्यप्रकाश ढौंडियाल के द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में उनके गीतों के द्वारा शुरुआत की गई उनके गीतों को लोग ने सन 1965_70 के दशक में संगीत प्रेमियों के द्वारा खूब उनके गीतों को गीतों को सुना गया आज भी उन्हें राधाखंडी विद्या के पारंगत गायन के लिए याद किया जाता है। आपने उनके गीतों में शायद विभिन्न मंचों पर सुना होगा चैती गायन बाजूबंद भदोली मंगल अच्छरी समषिणे समसामयिक गीत गाए जो कि अब सुनने के लिए मुश्किल ही मिलते हैं जिस पर स्थानीय कलाकारों के साथ मिलकर के उनके गीतों पर हिमालयी ज्ञान विज्ञान संस्थान विगत 2014 से शोध एवं संरक्षण का कार्य कर रहा है।

