
टिहरी गढ़वाल। डोला पालकी खुलवाने वाले महान समाज सुधारक चंद्र प्रकाश सिरोला का दिनांक 17 नवम्बर 2022 को लगभग 85 वर्ष में देहांत_डागर पट्टी में 1978 में ढोला पालकी खुलवाने वाले महान समाज सुधारक चंद्रप्रकाश सिरोला जी का जन्म ग्राम गवाना जाखीं डागर जिला टिहरी गढ़वाल में एक साधारण राजमिस्त्री परिवार में हुआ था वह एक स्वाभिमानी क्रांतिकारी व्यक्ति थे अपनी बुद्धिमता के बल पर बिना किसी को बताए 3 दिन तक घोड़ों को अपने घर के अंदर रखकर बारात प्रस्थान के समय बाहर निकाला और अपने छोटे भाई को घोड़ी में बिठाकर बारात ले गए उन्होंने सोचा कि अगर में डोला पालकी को ले जाने की घोषणा करता हूं तो कोई भी शिल्पकार बारात में डर के मारे नहीं आएगा साथ ही सामान्य के लोग हमें रोकने की योजना बनाएंगे बारात को देखकर चारों और सीटियां बजने लगी लेकिन उनके अदम्य साहस को देखकर आगे कोई नहीं आया जिससे सकुशल बारात निपट गई लेकिन चंद्रप्रकाश सिरोला जी के लिए पानी के धारे बंद हो गए दुकानदारों ने राशन देनी बंद कर दी, उनके लिए घराट बंद हो गए, गांव में काम धंधा उनके लिए बंद हो गया क्योंकि वह एक प्रसिद्ध लकड़ी के कुशल कारीगर थे हुए तिवारी और सतीर बनाने वाले महान कलाकार थे जिसके कारण वह दूर के गांव में जाकर काम करते थे समाज में एक दूसरी कुरीति भी थी जब कोई सामान्य का मरता था तो शंख बजाया जाता है था लेकिन शिल्पकारों के मरने पर शंख नहीं बचता था सिरोला जी ने सबसे पहले अपने पिताजी के मरने पर शंख बजाया था जिससे उन्होंने इस प्रथा को भी तोड़ दिया था वह हमेशा स्वाभिमान के लिए जीते थे जिसके कारण शिल्पकार समाज जागृत होने लगा उनकी समाज सुधारक के कार्यों को देखते हुए भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने उन्हें डॉ भीमराव अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भी किया है उनके देहांत से संपूर्ण शिल्पकार समाज बहुत दुखी है उनकी सब यात्रा में सैकड़ों शिल्पकार शामिल हुए साथ ही सामान्य के अनेक लोग भी शामिल हुए क्योंकि समाज में ऐसे महापुरुष युगों युगों के बाद पैदा होते हैं उनके शव यात्रा में अनुसूचित जाति समाज के साथ साथ अन्य सामाज के लोग सामिल हुए।