भारत में ही भारत के मूलनिवासियों के प्रति इतनी नफरत आखिर क्यों?
भारत में यहां के मेहनतकशों, हुनरमंदो,सृजन और निर्माण से जुड़े समूहों के साथ हजारों वर्षों से अत्यधिक अमानवीय व भेदभाव भरा व्यवहार उन्हीं के देश, उन्हीं की भूमि पर किया गया इसके कारणों को जानने और निवारण के मार्ग को खोजने और उस दिशा में प्रयास करने में हजारों वर्षों में असंख्य लोगों ने अपना पूरा जीवन लगा दिया अपने परिवार कुर्बान कर दिए किंतु यह भेदभाव पूर्ण और अमानवीय व्यवस्था आज भी जारी है और भारत को और यहां के सृजनकर्ता मूल निवासियों को एक बार फिर से एक नए रूप में अपने शिकंजे में ज जकड़ने को आतुर दिखाई दे रही है
कितने आश्चर्य की बात है कि भारत के इस मूलनिवासी मेहनतकश सृजनकर्ता वर्ग को शिक्षा संपत्ति और सम्मान से दूर रखने के लिए कुछ लोग, कुछ संगठन, कुछ संस्थान, कुछ दल दिन रात मेहनत कर रहे हैं प्रातः 4:00 बजे से भी इस दिशा में गतिशील हो जाते हैं और पूरा दिन यहां तक कि रात तक इसी दिशा में प्रयत्नशील और कार्यरत रहते हैं कि कैसे इन लोगों को आगे बढ़ने से रोका जाए, कैसे इन्हें अपमानित किया जाए, कैसे इन्हें अधिकतम बेबस लाचार साधनसंपत्ती और शिक्षा विहीन बनाया जाए जिससे यह केवल उनकी कृपा पर निर्भर रहें और उनके मोहताज बने रहें तथा अपना सर्वस्व इनकी तरक्की इनकी खुशहाली इनकी संपन्नता के लिए न्योछावर करते रहें।
एक देश में वहां के समाज के एक हिस्से की शासन प्रशासन में भागीदारी को रोकने के लिए बड़े-बड़े आंदोलन किए जाते हैं, प्रचार प्रसार माध्यमों के सहारे कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी दिन-रात यहां इनकी भागीदारी को रोकने के लिए माहौल बनाते हैं, इसके लिए सड़क जाम कर दी जाती हैं ट्रेनें बसें और अन्य सरकारी संपत्तियों जला दी जाती हैं उनकी पदोन्नति को रोकने के लिए बेमियादी हड़तालें की जाती हैं, विभागों, सरकारी l संस्थानों को अनिश्चितकाल तक बंद कर दिया जाता है कि अमुक वर्गों को शासन प्रशासन में भागीदारी न दी जाए तथा नियुक्त लोगों को पदोन्नत ना होने दिया जाए सिर्फ इसके लिए।
इनको शासन प्रशासन में आने से रोकने के लिए यहां तक कि इन्हीं के वोटों के बल पर बनी सरकारों द्वारा सरकारी संस्थानों में नियमित नियुक्तियां बंद कर दी जाती है विभागों में आवश्यक पदों को भरने के लिए आउटसोर्सिंग से भर्तियां की जाती है ठेकेदारों के माध्यम से कार्मिकों को भरा जाता है उनकी नियुक्तियां की जाती हैं,इसके बावजूद भी संतुष्टि ना मिलने पर सरकारों द्वारा सरकारी संस्थानों को ही निजी हाथों में, पूंजी पतियों के हाथों में बेच दिया जाता है जिससे पूंजीपति पूरी तरह अपनी मर्जी से नियुक्तियां करें तथा निकालें जिससे इन वर्गों को हर हाल में सशक्त होने से रोका जा सके।
साथ साथ रह रहे एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग को शिक्षा, संपत्ति, सम्मान तथा शासन प्रशासन में भागीदारी से रोकने के लिए इतनी बौद्धिक शारीरिक आर्थिक शक्ति का प्रयोग करने का दुनिया में कहीं उदाहरण नहीं मिलता है कट्टर से कट्टर शत्रुओं में भी समय के साथ साथ मित्रता हो जाती है, अनेक शत्रु राष्ट्र कालांतर में मित्र राष्ट्र बन गए, विभाजन की अनेक दीवारें ढह दी गई, मानव समूह के अनेक वर्गों ने अपने कालांतर में की गई भूलों के लिए दूसरे समूह से क्षमा याचना की तथा उन्हें हर क्षेत्र में समान भागीदारी प्रदान की किंतु भारत में है विभाजनकारी, अन्याय कारी, शोषणकारी ताकतें विज्ञान और तकनीक के इस युग में भी विज्ञान और तकनीक का प्रयोग भारत के सृजनकर्ता मूल निवासियों से सब कुछ छीनने की दिशा में कर रही हैं।
इससे यह सिद्ध होता है कि भारत में भले यहां साथ साथ निवास कर रहे हजारों साल से यहां रह रहे कुछ समाज कुछ समूह जिनका यहां शिकंजा स्थापित है वास्तव में इस देश के मूल निवासी नहीं है क्योंकि यदि वे यहां के मूलनिवासी होते तो उन्हें इस देश से प्यार होता, अपनत्व होता, इस देश के सभी नागरिकों से अपनत्व व प्रेम होता, वे यहां केवल लूट खसोट नहीं करते, तथा यहां से लूट खसोटकर अर्जित की गई संपत्ति को विदेशों में जमा नहीं करते, यहां के मेहनतकशों, हुनरमंदो, सृजनकर्ताओं की प्रगति में अपनी प्रगति तथा खुशी में अपनी खुशी समझते ना की उनकी बर्बादी के लिए प्रयासरत रहते, लेकिन इस समस्या से निजात पाने के लिए यहां के मूल निवासियों मेहनतकशों को अपनेपन की चादर ओढ़े इन नकली अपनों को पहचानना ही होगा,और सावधान व बचकर रहना होगा अन्यथा यह सिलसिला यूं ही चलता ही रहेगा।हजारों साल बीत गए हजारों और बीत जायेंगे।
एडवोकेट डा प्रमोद कुमार,संपादक “वंचित स्वर”राज्य अध्यक्ष पीपल्स पार्टी ऑफ इंडिया डेमोक्रेटिक उत्तराखंड