
भारतीय समाज एक बड़े ही विकट दौर से इस समय गुजर रहा है हजारों साल के अव्यवस्थित अनियंत्रित दौर को झेलने के बाद भारत के इतिहास में एक नई करवट ली थी 26 जनवरी 1950 को जब देश में इस भू-भाग में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को समता, स्वतंत्राता, बंधुत्व व न्याय के एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में भारतीय संविधन प्रदान किया था और अपेक्षा व्यक्त की थी भावी सरकारें इस दस्तावेज से संचालित होकर देश के प्रत्येक नागरिक को गरिमामय जीवन और गरिमामय जीवन निर्माण हेतु अवसर प्रदान करेगी। जिसके सहारे जब प्रत्येक व्यक्ति का जीवन गरिमामय हो जाएगा तो राष्ट्र स्वता ही गरिमामय बनकर पूरे विश्व के मानव समुदाय को एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करेगा किंतु भारतीय संविधन को लागू हुए अभी 75 वर्ष पूर्ण नहीं हुए कि देश का गणतंत्रा और गणतंत्रा प्रणाली लाचार और बेबस स्थिति में नजर आ रहे हैं जिसे समझने के लिए हम यहां पर केवल दो प्रसंगों का जिक्र करेंगे वैसे तो देश में ऐसे प्रसंगों की बाढ़ सी आई हुई है पहला प्रसंग लेते हैं जो इस समय यहां सोशल मीडिया में चल रहा है वैसे इस प्रकार की जातिगत अपमान हिंसा उत्पीड़न व हत्या या हत्या के प्रयास का यह पहला मामला नहीं है उत्तराखंड बनने से पूर्व भी यहां जघन्य कांड जातिगत कारणों से हुए हैं और उत्तराखंड बनने के बाद तो यह सिलसिला यह क्रम जारी है इन दिनों उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक युवक हिंदू धर्म द्वारा निर्धरित सम्मान एवं जाति व्यवस्था के निम्न पायदान पर जिसे रखा गया है उसने मंदिर में भगवान को खोजना चाहा होगा या दर्शनों की आकांक्षा रखी होगी लेकिन इसके बदले उसे वहां मंदिर में रहने वाले पुजारियों द्वारा रात भर जलती लकड़ी से उसे जलाया गया और इस कदर जलाया गया कि वह बेहोश हो गया जिसे मृत समझकर छोड़ दिया गया अगली सुबह होश आने पर वह वहां से जान बचाकर भागा जिसका अभी देहरादून में उपचार चल रहा है और पूरा परिवार डरा सहमा। और सदमे की स्थिति में है उत्तराखंड सरकार यहां के तथाकथित मानवाधिकार वादी संगठन और जननायक सब खामोश हैं मामले को रपफा-दपफा करने और दबाने में जुटे हैं। दूसरा जो इस समय राष्ट्रीय सुर्खियों में है उसमें बिहार राज्य के शिक्षा मंत्राी प्रोसेसर चंद्रशेखर एक धर्मिक पुस्तक के उन पंक्तियों पर आपत्ति प्रकट कर रहे हैं जिसमें समाज के उस बहुसंख्यक वर्ग जिसमें वे जन्मे हैं उसके बारे में कुछ आपत्तिजनक बातें लिखी हुई हैं उनके ऐसा कहने पर एक धर्माचार्य द्वारा उनकी हत्या का पफतवा जारी कर दिया गया कि जो उनका सिर काट कर लाएगा उसे वे 1 करोड़ ईनाम देंगे। जिस पर एक धर्माचार्य द्वारा खुलेआम हत्या की बात करने पर भी शासन-प्रशासन न्यायपालिका मीडिया कोई भी इतनी बड़ी सरेआम हत्या की बात करने वाले व्यक्ति के खिलापफ कार्यवाही की मांग या कार्यवाही नहीं करता जब की एक पुस्तक में अपने वह समाज के अपमान की बात से असहमति जताने वाले व्यक्ति को अपराधी ठहराए जाने के प्रयास चल रहे हैं ये दोनों प्रकरण यह सिद्ध करते हैं कि देश में आज ना ही सार्वजनिक स्थलों में देश के नागरिकों को जाने की स्वतंत्राता है ना ही अपनी पीड़ा अपने अपमान के विरूद्ध विचार रखने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्राता ही शेष रह गई है इन हालातों में हमारा गणतंत्रा किस दौर से गुजर रहा है इस गणतंत्र का भविष्य किस ओर जा रहा है यह स्वतः ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस गणतंत्र या इस संविधन के स्थान पर ऐसी ताकतें भारत में कौन सी व्यवस्था लागू करवाना चाहती हैं यह भी अनुमान लगाना कठिन नहीं होना चाहिए लेकिन मुठ्ठी भर लोगों के कल्याण विलासिता व हुकूमत चलाने वाले लोगों को इससे कोई पफर्क नहीं पड़ता वे चाहते हैं मुठ्ठी भर लोग ऐसो आराम से जिये बाकी लोग उनके ऐसो आराम के प्रबंधन के लिए जिये हैं इसलिए सबको समान अवसर व न्याय प्रदान करने वाला मौजूदा भारतीय संविधन व गणतंत्र उनके आंख की किरकिरी बना हुआ है?
– डाॅ0 प्रमोद कुमार’