वर्तमान समय में देश दो विचारधराओं के परस्पर चरम संघर्ष के दौर से गुजर रहा है जिसमें एक ओर वह विचारधरा है जो मनुष्यों में वर्गीकरण करती है विभेद पैदा करती है। असमानता के चिरस्थाई सिद्धांत को प्रतिपादित स्थापित और चिरस्थाई बनाना चाहती है तथा इस दिशा में वे लोग जो इस विचारधरा से जुड़े हैं वे हजारों वर्षों से बिखेर कार्यरत, प्रयासरत तथा पूर्ण प्रतिबद्ध के साथ संघर्षरत रहते हैं तथा वे इस असमानता, गैरबराबरी विभेदकारी मनुष्यों के बीच परस्पर शोषण वाले विचार और सिद्धांत को परमसत्य तथा परम आवश्यक सिद्ध करने में जुटे रहते है तथा इस सिद्धांत के प्रतिपादक और परिपालक संख्या में कम होने के बावजूद भी अपने इस अमानवीय और शोषणकारी सिद्धांत को श्रेष्ठ सिद्ध करने हेतु पूरी ईमानदारी और प्रतिबद्धता से कार्य करते रहते हैं तथा मन वचन और कर्म से इस विचार को प्रचारित प्रसारित और प्रतिस्थापित करने में जुटे रहते हैं।
वहीं दूसरी ओर समता, स्वतंत्राता, बंधुता, न्याय और करूणा के सिद्धांत को जानने मानने और अपनाने वाले लोग इस सिद्धांत का महत्व जानने के बाद भी इसे प्रचारित प्रसारित और प्रतिस्थापित करने हेतु उस गति से निष्ठा से ईमानदारी से प्रतिबध्दता से कार्य नहीं करते हैं जितना इस महान विचार को मानवता के परम हित के लिए प्रसारित और प्रतिस्थापित करना जरूरी ही नहीं परम आवश्यक भी है। इस सिद्धांत के अनुयायी अधिक से अधिक इसे अपने जीवन से अपना लेते हैं या कभी कभार इस विषय पर होने वाली चर्चाओं या कार्यक्रमों में जाकर बड़ी जोर-शोर से इसकी महत्त्ता पर भाषण देकर अपने कर्तव्यों की इति श्री कर लेते हैं उससे आगे उन्हें इस अभियान की सपफलता असपफलता से कोई लेना देना नहीं होता है दूसरे कुछ लोग जो इस विचारधरा के पैरोकार होने का लेबल लगाकर घूमते रहते हैं। उनमें से अध्किांश केवल अपनी प्रसिद्धि व अन्य निजी स्वार्थों की सिद्धि के लिए इस विचार के पैरोकार बने रहते हैं दूसरी ओर इससे विपरीत विचार की बात करने पर वे खामोशी की चादर ओढ़ लेते है या ढुलमुल रवैया अपनाकर बच निकलने का रास्ता खोजते है और इसमें साथ-साथ यदि उन्हें विपरीत विचारधरा के पक्षकारों की ओर से कोई क्षणिक लाभ का अवसर प्राप्त होता है। तो वे अपनी विचारधरा से समझौता कर इस क्षणिक लाभ के अवसर को हासिल करने में क्षणिक भी देर नहीं करते।
यही कारण है कि सदियों गुजर जाने के बाद भी हर दौर में खासकर भारत भूमि में मानवीय सोच पर अमानवीयता हावी रही है करूणा पर हिंसा भारी रही है प्रेम पर नपफरत हावी रही है जोड़ने की जगह तोड़ने वाली सोच हावी रही है इन्हीं कारणों से समता, स्वतंत्राता, बंधुता, न्याय व करूणा के सिद्धांत पर पूरी निष्ठा व सच्चाई से चलने वाले लोगों के ऊपर कार्य का अत्यधिक बोझ आ जाता है, जबकि विपरीत विचारधरा के सभी ये लोग अपनी विचारधरा की स्थापना हेतु समान रूप से कार्य करने के कारण अपनी विचारधरा को स्थापित करने में भी सफल हो जाते हैं तथा प्रकृति प्रदत्त्व इस जीवन को पूर्ण आनंद से जीते भी हैं।
जबकि इस विचारधरा के लोग समान रूप से समर्पण के अभाव के कारण इस अभियान की जिम्मेदारी अपने चंद लोगों पर छोड़ देते है जिससे उनका जीवन भी केवल, अभावों, कष्टों और मुसीबतों से गुजरता हैं और तभी तो लोग अमानवीय व्यवस्था के हावी रहने के कारण वैसे ही अभावों, मुसीबतों और तकलीपफों में जी ही रहे हैं।
यही क्रम सदियों से चला आ रहा है इन्हीं कारणों से विश्व का सबसे महान दर्शन विचारधरा और उसके अनुदायी अपराधीयों का जीवन जीते और निरपराध सजा काटते आ रहे हैं और अत्याचारी शोषणकारी और विभेदकारी लोग और विचारधरा फल फूल रही है उनके अनुयायी राज करते आ रहे हैं आज फिर से देश में वहीं दौर चल रहा है जहाँ एक ओर अमानवीय सोच के लोग प्रमुख प्रतिष्ठानों पर बैठे हैं वही उनका हर पायदान पर बैठा व्यक्ति पूरी निष्ठा से कार्य कर देश की वर्तमान, संवैधनिक मानवतावादी व्यवस्था को ध्वस्त कर अपनी व्यवस्था को स्थापित करने में पूर्ण रूप से जुटा है वहीं, संवैधनिक और मानवतावादी व्यवस्था के पक्ष में गिने चुने लोग झूझ रहे हैं। बाकी सब तमाशबीन बनकर तमाशा देखते हुए देखे जा सकते हैं।
– डॉ प्रमोद कुमार

