मणिपुर में आदिवासी महिलाओं के साथ अमानवीय बर्बरता पूर्व शर्मनाक कृत्य से संवेदनशील लोग स्तब्ध हैं. वहाँ आक्रोशित भीड़ द्वारा महिलाओं के साथ जो कुछ किया जा रहा था उससे मानवता शर्मसार हुई है उस घटना की गंभीरतापूर्वक कल्पना करें तो मन सिरह उठता है. इस प्रकार के अमानवीय लोगों के प्रति कठोर कार्रवाई न की गई तो ऐसी घटनाएं कहीं भी किसी के साथ भी हो सकती है.
. ऐसी घटनाएं अचानक ही नहीं होती है बल्कि उसकी पृष्ठभूमि में दूसरे जातीय समुदाय के प्रति नफरत भरी भावनाएं लंबे समय से कार्य कर रही होती है. इन नफरत भरी भावनाओं के साथ जब भीड़ इस प्रकार के कुकृतियों को अंजाम देती है उसे उसे मानसिक संतुष्टि प्राप्त होती है. क्योंकि आपने मन में उसने पहले से ही उस जातीय समुदाय के प्रति मन में ईर्ष्या व बदले की आग लगाई होती है. साथ ही मानसिक रूप से विक्षिप्त समाज का प्रभुत्वशाली वर्ग अपने से निम्न वर्ग को दंड देने के लिए उसे समाज के महिलाओं को निशाना बनाता है. आधुनिक सभ्य समाज का यह सर्वाधिक क्रूर एवं गणित कृत्य है.
यह शुद्ध रूप से मणिपुर के आदिवासी जातीय और धार्मिक समुदाय के प्रति वहां के सर्वाधिकार वादी समाज के मन में बैठी हुई जातीय और धार्मिक हिंसा थी. जो अमानवीय रूप से बाहर आई है.
इस भीड़ में पुलिसकर्मियों की मौजूदगी को देखकर लगता है कि इसे स्थानीय पुलिस का भी संरक्षण प्राप्त था. किसी देश व समाज के लिए इस प्रकार की घटनाएं तब और भी खतरनाक हो जाती है जब इस प्रकार के दंगाइयों के पक्ष में पुलिस व ऐसे लोग खड़े हो जाते हैं जिन पर कानून एवं व्यवस्थाओं को बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है.
यह घटना सबक भी देती है कि जब किसी क्षेत्र में बाहर से आने जाने वाले लोगों व सूचना तंत्र पर रोक लगा दी जाती है तो उसके दुष्परिणाम क्या होते हैं. बहु संख्यक एवं ताकतवर समुदाय कैसे कमजोर और अल्पसंख्यकों पर शासन-प्रशासन की सह लेकर जुल्म करता है. जब किसी क्षेत्र में इंटरनेट व मीडिया पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत हो जाती है तो शासन प्रशासन और पुलिस को बड़ी संवेदना के साथ क्षेत्र के लोगों की रक्षा के लिए काम करना चाहिए. लेकिन यहां इस धारणा के विपरीत ही काम हुआ है.
. मणिपुर के आदिवासी समाज को शासन प्रशासन के संरक्षण में स्थानीय वर्चस्व वादी समाज के दुष्ट लोगों के द्वारा किस तरह से प्रताड़ित किया गया. प्राप्त जानकारी के अनुसार अत्याधुनिक हथियारों से लैस सैकड़ों के भीड़ जब कांगपोकपी जिले के एक गांव में घुसी तब 5 लोगों का एक परिवार उनसे बचने के लिए जंगल की ओर भागा, भीड़ ने उनके दो पुरुष सदस्यों को मार डाला जबकि 3 महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया उनके साथ छेड़खानी की गई एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार भी किया गया और ऐसा करते हुए बेशर्मी के साथ इन सब का वीडियो भी बनाया गया. समाज के कमजोर वर्ग के साथ बेशर्मी से यह अमानवीय अन्याय अत्याचार पुलिस के संरक्षण में हो रहा था. तब राज्य सरकार बेखबर थी. स्थानीय जनप्रतिनिधियों का कहना है कि राज्य सरकार को इसकी पूरी जानकारी थी.
आश्चर्य होता है कि इतनी बड़ी घटना होने के बाद लगभग 3 माह के बाद ऐसी घटनाओं की सार्वजनिक रिपोर्ट अब सामने आ रही है.
. इस प्रकार की घटनाएं हिटलर के शासनकाल के उस युग की याद दिलाती है जब जर्मनी में हिटलर ने पूरी मीडिया पर प्रतिबंध लगाया था और उसके समर्थक उग्र राष्ट्रवाद के जुनून में अपने देश के कमजोर और अल्पसंख्यकों के साथ अमानवीय जुल्म कर रहे थे .तब तक हिटलर को जर्मन में उसके समर्थक अपने हीरो के रूप में देखते थे. उसके उग्र राष्ट्र वाद ने उसके ही लोगों को दंगाई बना दिया था. जर्मनी में इस प्रकार के अमानवीय घटनाओं की जानकारी दूसरे समूह व देश दुनिया के लोगों को हिटलर के शासन की समाप्ति के बाद ही मिल पाई.
जो लोग अभी तक उसे बड़ा देशभक्त और राष्ट्र प्रेमी समझते थे उन्हें भी उसका साथ देने के लिए अपनी गलतियों का आभास बाद में हुआ और उन्हें पश्चाताप भी हुआ. उनमें से बहुत से लोगों ने आत्महत्या भी की, इतिहास कहानी भर नहीं होता है बल्कि इतिहास पूर्व की घटनाओं से सबक लेने का महत्वपूर्ण विषय भी है.
मणिपुर की इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है जिसे पूरी दुनिया में भारतीय शर्मसार हो रहे हैं. इन सब के बाद भी देश भर के लोगों में ऐसा गुस्सा नहीं दिखाई दे रहा है जैसा 2012 में दिल्ली मैं निर्भया के मामले में दिखाई दे रहा था. जबकि उस समय निर्भया मामले में आरोपियों की शीघ्र ही गिरफ्तारी भी हो गई थी. उसके बाद भी देशभर में संगठित रूप से ऐसा आक्रोश प्रकट किया गया कि 2014 में सत्ता परिवर्तन मैं इस घटना की महत्वपूर्ण भूमिका रही.
. आज हमारी राजनीति और बेशर्म मीडिया मणिपुर कि इस घटना की तीव्र निंदा करने व जिम्मेदार लोगों से प्रश्न करने के बजाय उसे डैमेज कंट्रोल करते हुए अन्य घटनाओं को उठाकर उसे संतुलित करने का प्रयास कर रही है.
. किसी भी देश व समाज में अपराध होना कोई नई बात नहीं है. ऐसे अपराध कभी कभार होते रहते हैं. लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि इन अपराधों के प्रति जिम्मेदार लोग क्या नजरिया अपनाते हैं. क्या निर्णय लेते हैं. अपराधियों को जब राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है तो वह बेखौफ हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में देश में अल्पसंख्यक व कमजोर जातीय समूह स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं. ऐसी स्थिति एक सभ्य और लोकतांत्रिक समाज के लिए उचित नहीं कही जा सकती है. सत्ता की जिम्मेदारी बनती है कि वह देश के प्रत्येक नागरिक की जाति धर्म लिंग आदि विविधताओं से ऊपर उठते हुए निस्वार्थ रूप से सुरक्षा की जिम्मेदारी लें जिससे कि देश के नागरिकों का अपने देश की संविधान व कानून व्यवस्था पर विश्वास कायम रहे.
धन्यवाद
संजय कुमार टम्टा,बागेश्वर

