प्रकृति…
ये तेरी कैसी न्याय व्यवस्था है?
की तुझे उजाड़ा उद्योपतियों ने,
बड़े-बड़े बंगलो में रहने वाले,
ऊँची-ऊँची पहुँच के लोगों ने!
जिन्होंने काटे अंधाधुध पेड़,
पहाड़,पर्वत,पठार,
जो निगल गए जाने कितनी
नदियों को!
जिन्होंने तेरी छाती में,
खड़ी की ऊँची-ऊँची मीनारें!
और तूने
अपनी दण्डव्यवस्था में,
शामिल किया सबसे पहले
गरीबो,मजूरों,किसानों को,
जिनके पास सर ढकने की
छत तक नसीब ना थी!
सच में!
ऊँची पहुँच के लोगों की पहुँच
बहुत ऊँची होती है!
©विश्वास टम्टा
8979011806