देहरादून देहरादून स्थित “इकफाई यूनिवर्सिटी” द्वारा आयोजित “प्रिंसिपल – कांक्लेव” में भारतवर्ष के कई प्रदेशों से आए शिक्षकों, प्रधानाचार्य, प्रोफेसर सहित कई शिक्षाविदों ने अपने विचार “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020” और बेहतरीन शिक्षा के लिए नवाचारों पर अपनी बातचीत से शिक्षा जगत को नई दिशा प्रदान करने का प्रयास किया। इस अवसर पर उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद के पूर्व सदस्य जितेंद्र सिंह बुटोइया को भी विचार रखने का अवसर प्राप्त हुआ। जिस पर उन्होंने अपने वक्तव्य का शुभारंभ करते हुए कहा कि “शिक्षा शेरनी का दूध है जो पीयेगा वह दहाड़ेगा।” शिक्षा छात्र-छात्राओं में गलत व सही का अंतर करने का बेहतरीन उपाय है, शिक्षा के माध्यम से ही वह प्रश्न करना सीखना है। तर्क करने योग्य उसको उसके गुरुजनों शिक्षकों के द्वारा ही बनाया जाता है। तर्क एंव वाद विवाद प्रतियोगिताओं के पश्चात ही वह किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। शिक्षा ग्रहण करने व सीखने के चार कारण होते हैं :- 1 – जीने के लिए सीखना। 2 – करने के लिए सीखना। 3 – कुछ बनने के लिए सीखना। 4 – दूसरों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए रहने के लिए सीखना। उन्होंने याद दिलाया कि भारत कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था। अखंड भारत था। आज हम पहले तीन पर तो बहुत अच्छे तरीके से ध्यान देते हैं। चौथा कारण अद्वितीय सामंजस्य स्थापित करना अवश्य ही हमें सीखना और सीखना होगा, तभी जाकर शिक्षा का संपूर्ण और बेहतरीन स्तर हम प्राप्त कर पाएंगे। उन्होंने आशा व्यक्त की है की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पश्चात हम भारत के लोग भारत में अद्वितीय सामंजस्य स्थापित करेंगे। इस अवसर पर बुटोइया को इकफाई यूनिवर्सिटी द्वारा स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित भी किया गया।