पंतनगर (ऊधमसिंहनगर) केमेंनटेरियन अगामा रिपब्लिक इंडोनेशिया यूनिवर्सिटी हिंदू नेगेरी आई गुस्ती बागस सुग्रीव देनपसार यूनिवर्सिटी बाली, इंडोनेशिया और साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में सुग्रीव यूनिवर्सिटी बाली के सभागार में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य संगोष्ठी और कवि सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें पंतनगर उत्तराखंड से डॉ. राधा वाल्मीकि को भी शोध पत्र वाचन के लिए तथा कवि सम्मेलन में कविता पाठ करने के लिए आमंत्रित किया गया। प्रथम दिवस 14 जून को सुग्रीव यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर प्रोफेसर डॉ. आई जी एस टी एन जी आर सुडियाना, एम एस आई रेक्टर तथा प्रोफेसर डॉ. आई वाईयान, दिव्या एस एस टी एम ए देनपसार बाली तथा साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन दिल्ली के अध्यक्ष मनोज कुमार की गरिमामयी उपस्थिति में कार्यक्रम का शुभारंभ बाली के पारंपरिक लोकनृत्य से हुआ। संगोष्ठी में भारत, मॉरीशस, इंडोनेशिया आदि देशों के प्रतिनिधियों ने प्रतिभाग किया।
प्रथम दिवस के द्वितीय सत्र में डॉ. राधा वाल्मीकि ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए अपने शोध आलेख “भारतीय संस्कृति में संत परंपरा” पर व्याख्यान दिया जिसकी मुख्य अतिथि सहित सभी गणमान्य अतिथियों, प्रोफेसरों, प्रतिभागियों एवं शोधार्थियों ने भूरी-भूरी प्रशंसा की।
कार्यक्रम में चयनित प्रतिभागियों के शोध पत्र वाचन के पश्चात डॉ. राधा वाल्मीकि सहित सभी प्रतिभागियों को प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। द्वितीय दिवस में कवि सम्मेलन का आयोजन बाली स्थित परमधाम आश्रम में किया गया जहां भव्य स्वागत के साथ आश्रम के विद्यार्थियों ने सुंदर लोकनृत्य और भगवत गीता आरती प्रस्तुत की। परमधाम आश्रम के गुरु द्वारा संस्कृत कविता पाठ करके कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया जिसमें डॉ. राधा वाल्मीकि ने विदेश की धरती पर अपनी भारत भूमि की प्रशंसा करते हुए अपनी कविता “कितनी विशाल महिमामयी मेरे भारत की वसुंधरा, परम पुनीता पावनतमा मेरे भारत की वसुंधरा” कविता से आग़ाज़ करते हुए काव्य पाठ किया। काव्य पाठ के पश्चात सभी गणमान्य कवियों को परमधाम आश्रम के गुरूजी द्वारा सम्मानित किया गया तदुपरांत साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन के द्वारा प्रकाशित साझा काव्य संग्रह का भी लोकार्पण किया गया जिसमें डॉ. राधा वाल्मीकि की कविताएं भी शामिल हैं। साहित्यिक गतिविधियों के संपादन के साथ ही समस्त प्रतिभागियों को संस्था द्वारा इंडोनेशिया बाली और वियतनाम भ्रमण भी कराया गया। स्वदेश लौटने पर डॉ. राधा वाल्मीकि ने बताया कि उनकी यह पहली साहित्यिक विदेश यात्रा अत्यंत सुखद, रोमांचक और अविस्मरणीय रही है।