कोटद्वार गढ़वाल देश के संविधान निर्माता, भारतरत्न बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर ने आजादी के बाद देश का संविधान निर्माण कर हजारों वर्षो से असमानता,शोषण का दंश झेल रहे करोड़ों वंचित लोगों को संवैधानिक रूप से आरक्षण के दायरे में लाकर उन्हें एक किया, लेकिन 1 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में राज्य सरकारों को यह अधिकार दे दिया कि वह अपने-अपने राज्यों में अनुसूचित जाति ,जनजाति के लोगों को मिलने वाले संवैधानिक आरक्षण का उप वर्गीकरण कर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति समाज को अलग-अलग धड़ों में विभाजित कर आरक्षण दे सकती हैं और उनकी एकता को विभाजित कर सकती हैं, सुप्रीम कोर्ट का या फैसला फूट डालो और राज करो जैसा है जो किसी भी दृष्टि से स्वागत योग्य नहीं है , क्योंकि इस फैसले से अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजातियां आपस में ही बंटकर कमजोर होंगी और उनमें टकराव पैदा होगा, जिससे सामाजिक न्याय का संघर्ष जातियों में बंटने के कारण कमजोर होगा,जातिय टकराव में वृद्धि होगी एवम् जातिय एकता प्रभावित होगी, सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस दुर्भाग्यपूर्ण फैसले में एक निराधार बिना आंकड़ों के तर्क दिया गया है कि, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों की सभी उपजातियां को आरक्षण का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है एवं कुछ जातियां ही आरक्षण का लाभ लेकर आगे बढ़ रही है और कुछ जातियां अभी भी आरक्षण के लाभ से वंचित हैं , जबकि सुप्रीम कोर्ट के पास अपने इस तर्क के समर्थन में न ही कोई आंकड़े हैं न कोई ऐसा शोध किया गया है , आधारहीन इस फैसले की बजाय सुप्रीम कोर्ट को भारतीय संविधान के संरक्षक होने के नाते प्रत्येक नागरिक के संवैधानिक मूलभूत अधिकारों का संरक्षण करना चाहिए था ,आरक्षण पर दिए गए इस निराधार फैसले से पूर्व सुप्रीम कोर्ट को राज्यों को निर्देशित करना चाहिए था कि, अनुसूचित जाति,अनुसूचित जन- जाति के जितने भी पद विभिन्न सरकारी विभागों में वर्षों से खाली पड़े हैं उन्हें भरा जाए , साथ ही सुप्रीम कोर्ट को अपनी निगरानी में एक ऐसी कमेटी का गठन करना चाहिए था जो पूरे देश में शोध करके बताएं कि देश में तेजी से बढ़ रहे निजीकरण से करोड़ों अनुसूचित जाति,जन-जाति के लोगों को नौकरियों में मिलने वाले आरक्षण का कितना नुकसान हो रहा है ,क्योंकि आरक्षण सिर्फ सरकारी नौकरियों में दिया जाता है प्राइवेट सेक्टर में नहीं ,इसी लिए केंद्र व राज्य सरकारें सरकारी आरक्षण को समाप्त करने की नीयत से निजीकरण की नीति अपना रही है ,अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन-जाति को दिया जाने वाला संवैधानिक आरक्षण कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम ना होकर शासन प्रशासन में इन वर्गों की हिस्सेदारी का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट को अगर लगता है कि अनुसूचित जाति, जनजाति की कुछ जातियां आरक्षण का लाभ नहीं ले पा रही है और आरक्षण से वंचित हैं तो सुप्रीम कोर्ट को केंद्र एवं राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगाते हुए निर्देशित करना चाहिए कि वह अनुसूचित जाति,जनजाति की शिक्षा रोजगार, आवास व्यवस्था पर विशेष ध्यान देकर ऐसी योजनाएं बनाएं जिससे समाज का कोई भी कमजोर एवम् वंचित तबका विकास की मुख्य धारा से पिछड़ न सके ,साथ ही अनुसूचित जाति,जनजाति के भूमिहीन लोगों को युद्ध स्तर पर कृषि भूमि आवंटित कर उन्हें सक्षम बनाए ताकि वे सक्षम एवं समृद्ध होकर आरक्षण का लाभ लेकर आगे बढ़ सके, समाज की असल समस्या आर्थिक पिछड़ापन है जिसे दूर करने की परम आवश्यकता है, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सबसे बड़ा नुकसान अनुसूचित जाति जनजाति को ये होगा की उनकी एकता खंडित होगी और उनके सामाजिक न्याय प्राप्ति का संघर्ष कमजोर होकर भिन्न-भिन्न जातियों में वर्गीकृत होकर रह जाएगा ,ऐसी स्थिति से ये वर्ग सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से भी हांसिए पर धकेल दिए जाएंगे , इसलिए अनुसूचित जाति ,जनजाति वर्गों को सोचना चाहिए कि, आरक्षण मात्र नौकरी एवं शिक्षा में अवसर पाने का माध्यम नहीं है, बल्कि आरक्षण उनकी एकता- अखंडता और शासन प्रशासन में भागीदारी का एक सशक्त माध्यम है, अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार आरक्षण का उप-वर्गीकरण होता है ,तो इन वर्गों का विभाजित होकर टूटना तय है, इसलिए अनुसूचित जाति,जनजाति वर्गों को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर गंभीरता से मनन कर अपने आरक्षण की रक्षा के लिए हर संघर्ष को तैयार रहने की जरूरत है।
*संघर्ष जिंदाबाद ,जय भीम, जय संविधान*
प्रेषक –
विकास कुमार आर्य
प्रदेश अध्यक्ष
शैलशिल्पी विकास संगठन
मुख्यालय-कोटद्वार गढ़वाल उत्तराखंड