बागेश्वर अनुसूचित जाति जनजाति उप वर्गीकरण आरक्षण एवं क्रिमिलियर के आदेश के विरोध में अनुसूचित जाति जनजाति शिक्षक एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष संजय कुमार टम्टा के नेतृत्व में दिनांक को 7 अगस्त 2024 को जिला अधिकारी बागेश्वर के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सड़क एवं परिवहन राज्य मंत्री अजय टम्टा,नेता प्रतिपक्ष लोकसभा राहुल गांधी, नेता प्रतिपक्ष राज्य सभा मल्लिकार्जुन खड़गे, नेता प्रतिपक्ष उत्तराखण्ड यशपाल आर्य को ज्ञापन भेजा गया ज्ञापन में कहा गया है कि, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पंजाब राज्य व अन्य बनाम देवेंद्र सिंह व अन्य C.A. NO. 2317/ 2011 के आदेश में राज्य सरकारों को एससी एसटी के निर्धारित आरक्षण में उपवर्गीय एवं क्रीमीलेयर को इस वर्ग के आरक्षण से बाहर रहने की अनुमति दी गई है। हमारी समझ से इस विषय पर निर्णय देते समय न्यायालय के समक्ष विषय से संबधित दूसरे अन्य पक्षों की व्यापकता को नहीं रखा गया है। संविधान के अनुच्छेद 341 के अनुसार, अनुसूचित जाति जनजातियों की सूची तैयार करने व उसमें परिवर्तन का अधिकार महामहिम राष्ट्रपति के पास है। जिसके लिए संसद की अनुमति अनिवार्य है। इस प्रकार से इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार जनता द्वारा निर्वाचित विधायिका के अधिकार क्षेत्र में है। इसलिए इस विषय को संसद के समक्ष रखते हुए पूर्व की स्थिति बहाल करते हुए निम्नांकित बिन्दुओं पर विचार किये जाने की आवश्यकता है-
1- केंद्र में अनुसूचित जाति में 1598 व जनजाति में 744 जातियां सूचीबद्ध हैं। इसके साथ ही प्रत्येक राज्य की अपनी अलग से सूची है। इस प्रकार से केंद्र व राज्यों में मिलाकर दोनों वर्गों में छ: हजार से भी अधिक जातियां हैं. इसके अंदर भी बहुत सी उपजातियां हैं. ऐसे में इन वर्गों सूचीबद्द जातियों को आरक्षण को उपवर्गीय आरक्षण में विभाजित करते हुए लागू करना अव्यवहारिक होगा।
2- संविधान में एससी एसटी वर्ग एक समान परिभाषा व सामान मानक के आधार पर एक जातीय समूह है।इनमें विभाजन अनुचित है. इसी आधार पर इन जातियों को सूचीबद्ध किया गया है। इस सूची में इस प्रकार के उप वर्गीय आरक्षण से विभाजन व जातीय संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जिसके लिए भविष्य में अलग-अलग आयोग की मांग भी उठने लगेगी।
3- उक्त आदेश के द्वारा राज्यों को इन वर्गों में क्रिमिलियर को बाहर रखने की अनुमति दी गई है। यह आदेश एससी एसटी प्रतिनिधित्व की अवधारणाओं के विपरीत है। इसे आर्थिक स्थिति के साथ जोड़ना अनुचित है।
4- आज भी केंद्रीय व राज्य सरकारों में अर्हर अभ्यर्थी ना मिलने के कारण इन वर्गों के हजारों पद रिक्त हैं। ऐसे में थोड़ी बहुत सक्षम वर्ग को भी बाहर कर दिया जाए तो इन पदों को भरना अत्यंत मुश्किल हो जाएगा। जिससे बैकलॉग और भी बढ़ता रहेगा।
5- 2011 की जनगणना के अनुसार एससी में 34% एसटी में 41% आबादी अशिक्षित है। शिक्षित आबादी का बड़ा हिस्सा सरकारी स्कूलों पर निर्भर होने के कारण गुणवत्तायुक्त शिक्षा से दूर है।इस प्रकार से अशिक्षित समूह ही अपनी अशिक्षा के कारण आरक्षण का लाभ नही उठा पा रहा है. इसलिए उसकी शिक्षा के लिए कारगर उपाय किए जाने चाहिए.
6- वर्ष 2021 में केंद्र सरकार के रिपोर्ट के मुताबिक गृह मंत्रालय में एससी एसटी वर्ग के लिए कुल 1,84,77 पदों में से 11,233 पद खाली है. रेल मंत्रालय में एससी एसटी ओबीसी के कुल 17,759 पद खाली है. इस रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार के कुल 53 मंत्रालयों में से 16 में 90 फ़ीसदी कर्मचारी काम करते हैं इनमें से सिर्फ 10 मंत्रालय ने ही अपने यहां खाली पदों की यह जानकारी साझा की है।इस प्रकार से इन वर्गों के रिक्त पदों की संख्या और भी अधिक हो सकती है.
7- 25 जुलाई 2024 संसद में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल जी द्वारा बताया गया कि देश में कुल 661 न्यायाधीशों में से एससी एसटी के मात्र 21 व 12 न्यायाधीश हैं. आजादी के 77 वर्षों के बाद भी न्यायपालिका में दोनों वर्गों का प्रतिनिधित्व क्रमशः 3.17% व 1.81% है। 5 जनवरी 2018 यूजीसी से प्राप्त आरटीआई रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल 496 कुलपतियों में से एससी एसटी के मात्र 6, 6 कुलपति हैं. इन वर्गों में जिसे अगड़ा वर्ग कहा जा रहा है. इसके लिए भी यहाँ तक पहुंचने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नही हो पाए हैं. इसे भी बाहर कर दिया जाय तो स्थिति क्या होगी इसका आंकलन किया जा सकता है।
8- आर्थिक सर्वे के आधार पर इन वर्गों की लगभग 92 फ़ीसदी आबादी अनौपचारिक क्षेत्र में रोज कमाओ, रोज खाओ की दयनीय स्थिति में कार्य कर रही है। जिनके पास नियमित आय का अभाव है। 2 अप्रैल 2018 के एबीपी न्यूज़ के अनुसार- एससी एसटी वर्ग के 1.8% लोग ही उच्च शिक्षा ग्रहण कर पाते हैं. 54.71% दलितों के पास एक गज जमीन भी नहीं है. मात्र 3.95% दलितों को ही सरकारी व स्थाई नौकरी प्राप्त है. इन वर्गों में 83% दलितों की मासिक आय ₹5000 से भी कम है और 89% दलितों के पास दो पहिया वाहन तक नहीं है ऐसी स्थिति में यह मान लेना या आरोप लगाना अनुचित है कि अपने ही समाज के अगड़े वर्ग के कारण यह वर्ग आगे नहीं बढ़ पा रहा है. बल्कि सच्चाई यह है समाज के इस अगड़े वर्ग की मैजूदगी के बाद भी केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जारी आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत आज भी लाखों पद इन वर्गों के रिक्त हैं। आरक्षण का लाभ लेने के लिए न्यूनतम अरहर्ता आवश्यक है,जो इस वर्ग की बड़ी आबादी की पहुंच से दूर है। इस प्रकार से इन वर्गों का एक बहुत बड़ा वर्ग आरक्षण लेने से पूर्व की अरहर्ता वाली स्थिति को ही प्राप्त नहीं कर पा रहा है। इसके लिए इस समाज का अगड़ा वर्ग नहीं बल्कि सरकार की लचर नीतियां जिम्मेदार है। जबकि इस प्रकार का सन्देश व आदेश आरक्षण के बल पर आगे बढ़े हुए समाज के प्रति अपने ही समाज के लोगों के प्रति नफरत व विरोधी भाव उत्पन्न करने का कार्य कर रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि आरक्षण से बल पर आगे बढ़ा हुआ वर्ग मुख्य धारा से पीछे इस वर्ग के भोजन, आवास, शिक्षा व बुनियादी सुविधाएं के लिए लगातार आवाज उठाता रहा है। ऐसे में इस वर्ग को भी इस सामाज से बाहर कर दिया गया तो इसके दूरगामी परिणाम इन वर्गों के हित में नही होंगे.अतएव महोदय से विनम्रता पूर्वक अनुरोध है न्यायालय के उपर्युक्त आदेश पर गहनतापूर्वक संसद में विचार विमर्श करने के बाद पूर्व की व्यवस्था की बहाली करते हुए इन वर्गों के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक स्तर को ऊपर उठाने के लिए ईमानदारीपूर्वक उपर्युक्त बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराने की कृपा कीजिएगा। ज्ञापन देने वालों में अनुसूचित जाति जनजाति शिक्षक एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष संजय कुमार टम्टा, बागेश्वर जिला अध्यक्ष सुनील धौनी, भुवन चंद्र, ललित मोहन टम्टा, नवीन त्रिकोटी, रवि कुमार उपस्थित रहे!