भाजपा ने जब देखा कि लोकसभा चुनाव २०२४ में उनकी आशा के अनुरूप रिजल्ट नहीं आया और उनकी पाटीं के सांसद और मन्त्री ई.वी.एम. के भरोसे घोषणा करते रहे कि संविधान बदलने के लिए”अब की बार चार सौ के पार भाजपा सरकार”जब उन्हें पूर्ण बहुमत नहीं मिला, ऐसी दशा में मन्शा पूरी न होते देख भाजपा ने पूर्ण बहुमत हासिल करने के लिए मूल निवासियों को मताधिकार से वंचित कर स्थाई तौर पर सत्ता प्राप्त कर उन्हें जमींदोज करने के लिए आनन-फानन में चुनाव आयोग से सांठ-गांठ कर “एस. आई. आर” लागू करने का फैसला लिया। यह विहार विधानसभा चुनाव में आजमाया हुआ फार्मूला रहा जिसमें उन्हें भारी सफलता भी मिली।सत्ता के स्वाद में भाजपा के सहयोगी दलों के मूल निवासी प्रतिनिधियों द्वारा उनका समर्थन करना “एस.आई.आर.” लागू करने में उनकी मदद मिलना स्वाभाविक है। देश के अन्दर भाजपा शासित राज्यों की सरकारों द्वारा एससी एसटी और ओबीसी तथा अकलियतों के घरों को सुशासन के नाम पर बुल्डोज करना,सुप्रिमकोर्ट के आदेश को भी धता बता देना, मूल निवासियों की गरिमा और प्रतिष्ठा को आर्य-पुत्रों द्वारा रौंदे जाने पर भी सत्ता के कान पर जूं तक न रेंगना,देश के चीफ जस्टिस पर एक ब्राह्मण वकील द्वारा जूता फेंका जाना और सत्ता से जुड़े मूल निवासी प्रतिनिधियों का भी चुप्पी साधे रहना भाजपा सरकार को “एस.आई.आर”. लागू करने को बल मिला है। इस योजना में उन मतदाताओं के मतों को मतदाता सूची से डिलिट करना है जो विपक्ष का साथ देते हैं और उनमें भी उन मतदाताओं का मत भारी मात्रा में डिलिट किया जाना है जो भारत के मूल निवासी मतदाता हैं और वे मूल निवासी मतदाता जिनके नेताओं ने अपने समाज को शासक जमात बनाने के लिए अपने राजनीतिक दलों का गठन किया है और उनमें कुछ राजनीतिक दल राज्य स्तर पर राजनीतिक सत्ता में भी रहे और अच्छा प्रदर्शन भी किया।वे हमेशा पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयासरत भी हैं।इस समय मूल निवासियों में राजनीतिक चेतना का उभार भी हुआ है। भारत का संविधान भारत के समस्त नागरिकों के हित में है। समस्त नागरिकों में ९०% नागरिक भारत के मूल निवासी हैं जिन्हें संविधान लागू होने के लम्बे अरसे के बाद भी संविधान सम्मत सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक न्याय अभी तक नहीं मिल पाया है।देश के समस्त नागरिकों को वोट का अधिकार है।९०% भारत के मूल निवासी अपने वोट के अधिकार से सत्ता के शिखर पर न पहुंच जाएं तथा धन,धरती और राजपाट में अपनी हिस्सेदारी लेकर उनके एकाधिकार को समाप्त न कर दें। इस भय से आर्यों के वंशज कई राज्यों में “एस.आई.आर” लागू करने का निर्णय लिया और लगभग ढाई सौ ब्यूरोक्रेट्स को एस, आई.आर .को उचित ठहराने के लिए विज्ञापन के तौर पर ला खड़ा कर दिया है जिनके ऊपर अनेक अपराधिक मुकदमें दर्ज हैं जिसको तथ्यों के आधार पर उजागर किया है, वरिष्ठ पत्रकार एवं ऐंकर अजय दुबे ने।
आज भारत बड़े संक्रमण काल से गुजर रहा है। भारत के मूल निवासियों को मताधिकार की समझ नहीं है। आर्यपुत्रों ने सन् १९५० से लेकर आज तक मूलनिवासियों को इमदाद बांटा अधिकार नहीं। खैरात में राशन, साड़ी,कम्बल तो बांटा किन्तु संविधान प्रदत्त अधिकार क्यों नहीं?आज आर्यों के वंशज देने वालों की लाइन में और भूखे-नंगे मूल निवासी लेने वालों की लाइन में खड़े मिलते हैं। शिक्षा के अभाव में वे कभी यह नहीं समझ पाते कि आखिर वे लेने वालों की लाइन में ही क्यों खड़े हैं और कब तक खड़े रहेंगे? वे देने वाले कब बनेंगे? सबसे बड़ी विडम्बना यह कि मूल निवासी समाज में समझदार लोग ईकाई में हैं जो आर्यपुत्रों के साम-दाम दण्ड भेद की नीति को समझते हैं अधिकतर लोग नासमझ हैं जो दहाई और सैकड़ा में नजर आते हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपने मूल निवासी पुरखों के आन्दोलन का लाभ उठाकर घरों और अपने गली मुहल्लों में तास के पत्ते भांजने में ही मसगूल रहते हैं। फिर नासमझों को जागृत कौन करेगा। समस्या विकट है।
मूल निवासी समाज के वे जन प्रतिनिधि चाहे वे सत्ता के साथ हों और चाहे वे सत्ता के स्वाद में उनका समर्थन ही क्यों न कर रहे हों “एस, आई,आर.” लागू करने वालों का जो समर्थन कर रहे हैं वे उस समय पछतावा भी नहीं कर पायेंगे जब एस आई आर की मार उनके ऊपर भी पड़ेगी।इस समय उसे रोकने के लिए नितांत आवश्यक है जन आंदोलन अन्यथा आर्यों के वंशज मूल निवासियों के वर्तमान और भविष्य दोनों को मिट्टी में मिला देंगे।

