हल्द्वानी दलित समाज की एक सशक्त आवाज़ श्री हीरालाल टम्टा जी नहीं रहे ।अभी- अभी ये खबर मुझे सोशल मीडिया के माध्यम से मिली ।स्तब्ध कर देने वाली खबर थी । सहसा विश्वास नहीं हुआ । वैसे वे कुछ समय से बीमार चल रहे थे ।कुछ समय पहले पौड़ी गया था तो उनके वहाँ जाने का अवसर मिला तथा उनसे मुलाक़ात भी हुई । मेरा उनसे तथा भारती जी आदि से तब मुलाक़ात हुई जब उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन तथा आरक्षण विरोधी भावनायें भी चरम पर थी । मैं दलितों की आवाज़ को एकजुट करने की कोशिश कर रहा था । उसी समय उत्तर प्रदेश में पंचायती चुनाव होने जा रहे थे । दलितों को 21 % आरक्षण का अधिकार मिला लेकिन पौड़ी के साथियों ने देखा कि उनके वहाँ 1100 ग्राम पंचायतों में दलितों को मात्र 40 ग्राम पंचायतें आरक्षित की गयी हैं ।यही से सम्पर्क बना । पौड़ी ही नहीं सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में यही स्तिथि थी तथा यहीं से संघर्ष का एक मज़बूत रिश्ता बना । उत्तराखण्ड शिल्पकार चेतना मंच के माध्यम से उत्तराखण्ड के दलितों की लड़ाई को लड़ने का एक माध्यम मिला । चाहे पंचायतों हों या विधानसभा या संसद में प्रतिनिधित्व का सवाल हो या सरकारी सेवाओं में प्रतिनिधित्व का सवाल हो या दलितों के उत्पीड़न के सवाल हों हीरालाल जी इन सभी संघर्षों की सशक्त आवाज़ थे ।उत्तराखण्ड बनने के बाद भी वे समाज की सशक्त आवाज़ थे । उनके जाने से उत्तराखण्ड के दलितों ने विशेषकर शिल्पकार समाज ने अपनी एक मज़बूत आवाज़ को दिया है और मैंने अपने एक वरिष्ठ सहयोगी व मार्गदर्शक को खो दिया है तथा वह भी ऐसे समय में जबकि उनके जैसे लोगों की बहुत ही ज़रूरत थी जब यह समाज चौतरफ़ा संकट को झेल रहा था । लेकिन ईश्वर को यही मन्जूर था ।लेकिन हमारी कोशिश रहेगी कि उनके द्वारा दिखाए रास्ते पर हम चलते । वे हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनका संघर्ष हमारे लिए हमेशा एक मार्गदर्शक बन कर हमें रास्ता दिखाता रहेगा।