
उत्तरकाशी। द्रौपदी का डांडा एवलॉन्च की चपेट में आने से मृत 29 पर्वतारोहियों के परिजनों ने घटना के लिए नेहरू पर्वतारोहण संस्थान को जिम्मेदार ठहराया है. परिजनों ने निम के समक्ष कड़ा आक्रोश जताया है. परिजनों का कहना है कि जब केदारनाथ सहित कई स्थानों पर एवलॉन्च आने की जानकारी थी और इसके साथ ही भूकंप जैसी मामूली गड़बड़ी भी बड़े पैमाने पर आपदाएं पैदा कर सकती हैं. इन सब की जानकारी होने के बाद भी अभियान को रोका क्यों नहीं गया? इस हिमस्खलन हादसे ने कई परिवारों से उनके चिराग छीने हैं. हिमाचल प्रदेश के नारकंडा गांव का कैंथला परिवार भी इनमें से एक है. इस परिवार पर तो एक के बाद एक दुखों का पहाड़ टूटा है. हादसे में जान गंवाने वाले गांव के एक बेटे की चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि अगले दिन ही गांव के एक और बेटे का शव पहुंच गया. इसी परिवार के संतोष कैंथला का कहना है कि, उनका पूरा परिवार पीढ़ियों से साहसिक खेलों के क्षेत्र में है. इसलिए वो इनमें शामिल जोखिमों को अच्छी तरह से समझते हैं. हालांकि, यह NIM की लापरवाही को कम नहीं कर सकता. हिमालय बहुत नाजुक है और यहां तक कि भूकंप जैसी मामूली गड़बड़ी भी बड़े पैमाने पर आपदाएं पैदा कर सकती है। अभियान से ठीक दो दिन पहले उत्तरकाशी क्षेत्र में 2.5 तीव्रता का भूकंप आया था. यह बहुत मामूली लग सकता है, लेकिन ताजा बर्फ की परत को तोड़ने के लिए पर्याप्त था. सुरक्षा उपायों के अनुसार, भूकंप के बाद पर्वतारोहण गतिविधियों को कुछ दिनों के लिए स्थगित करना चाहिए. लेकिन निम ने ऐसी कोई सावधानी नहीं बरती और बड़ी संख्या में पर्वतारोहियों के साथ पहाड़ों पर गए, जिससे पहले से ही ढीली बर्फ की सतह पर अतिरिक्त दबाव पड़ा। लापता पर्वतारोही अतनु धर के बचपन के दोस्त हिमांशु ने कहा कि उत्तरकाशी के स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि अभियान से दो दिन पहले 2 अक्टूबर को भूकंप आया था. इसके अलावा, द्रौपदी का डांडा में भी बर्फबारी हो रही थी. उन्होंने इस संबंध में कई पेशेवर पर्वतारोहियों से बात की. उन सभी ने बताया कि भूकंप की गतिविधियां पास की पर्वत श्रृंखलाओं की बर्फ की सतह पर प्रभाव डालती हैं, खासकर अगर ताजा बर्फ हो. लेकिन निम ने इन सभी संकेतों की अनदेखी की और अभियान चलाया, जो अंततः आपदा का कारण बना।