✍️ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासनकाल में देवकांत बरुआ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे।उन्होंने एक बार अपने संबोधन में कहा था, “Indira is a India and India is Indira”अर्थात इंदिरा ही इंडिया हैं और इंडिया ही इंदिरा है। इसका मतलब जब तक इंदिरा जी हैं तब तक इंडिया है और जब तक इंडिया है तब तक इंदिरा है किंतु सच्चाई यह है कि इंदिरा जी आज हमारे बीच में नहीं है किंतु इंडिया आज भी जिंदा है। दूसरे अर्थों में जब तक इंदिरा जी रहेंगी तभी तक इंडिया है अन्यथा इंडिया का कोई भी अस्तित्व नहीं होगा। देवकांत बरुआ का यह कथन व्यक्तिवाद को बढ़ावा देता है। इंसान की एक सुनिश्चित लाइफ होती है जबकि किसी संगठन अथवा संस्था के साथ ऐसा नहीं है। व्यक्त स्वयं में ईकाई है किंतु संगठन व्यक्तियों के विचारों का एक संग्रह होता है जो अमूर्त होता है। जब लोग व्यक्ति के सहारे आंदोलन को चलाते हैं और व्यक्ति को ही संगठन का सब कुछ मान बैठते हैं तो यहां पर मसीहा का जन्म होता है और जब लोग अमूर्त संगठन के विचारों से आंदोलन को आगे बढ़ाते हैं तो वहां मिशन का जन्म होता है। मिशन जिंदा रहता है और मसीहा लुप्त हो जाता है। क्योंकि मसीहा की एक सुनिश्चित लाइफ होती है। यद्यपि संगठन का जन्मदाता व्यक्ति ही होता है। संगठन के सिद्धांत और मूल्य सभी प्रकार के संगठनों पर लागू होता है। एक तलाक शुदा स्वयंभू बहुजन नेता स्वयं को देवकांत बरुआ की तर्ज पर पत्रकारों के प्रश्नों का जवाब देते हुए अपने संबोधन में कहता है, “vaman meshram is a bamsef and bamsef is a Vaman meshram” इस वाक्य का भी सीधा सा अर्थ है वामन मेश्राम ही बामसेफ है और बामसेफ ही बावन मेश्राम हैं अर्थात जब तक बावन मेश्राम जिंदा है तब तक बामसेफ है अन्यथा बामसेफ का अस्तित्व खत्म। स्वयंभू वामन मेश्राम 2003 में बामसेफ की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। बामसेफ एससी, एसटी, ओबीसी और इनसे कन्वर्टेड माइनारटीज का संगठन है किसी के बाप की बपौती नहीं जबकि कुछ लोग इस प्रकार का सवाल खड़ा करते हैं कि फलां की बामसेफ अमुक की है, फलां की बामसेफ अमुक की है। फलां की बामसेफ असली है और फलां की बामसेफ नकली है। किसी भी संगठन का एक सुनिश्चित लक्ष्य एक सुनिश्चित विचारधारा एक सुनिश्चित नीति रणनीति तथा संविधान सम्मत लोकतांत्रिक चरित्र होता है। जो व्यक्ति अथवा समूह उपरोक्त मूल्यों पर चलता है वही असली है बाकी सारे नकली हैं। किसी भी संगठन में स्वयंभू नेता के जन्मदाता संगठन के मूर्ख कार्यकर्ता होते है जो मिशन के प्रति नहीं बल्कि मसीहा के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं जिनकी मूर्खता का फायदा उठाकर वह स्वयंभू नेता कार्यकर्ताओं से शक्ति प्राप्त कर उन्हीं पर अपना अधिनायकवादी जुर्म ढाता है। इसलिए स्वयंभू नेता अपने ही कार्यकर्ताओं को जिन्होंने उसे शक्ति प्रदान की उसे गद्दार घोषित करता है और बदले में कार्यकर्ता प्रतिशोध में तथाकथित स्वयंभू नेता को गद्दार घोषित करने में हिचकते नहीं जबकि इसमें सबसे बड़ा दोष कार्यकर्ताओं का होता है जो संगठन में मिशन के लिए काम नहीं करते बल्कि अपने चहेते मसीहा के लिए काम करते है। वे अपनी नालायकी का प्रदर्शन करते हुए कार्यक्रमों की सभी सत्रों की अध्यक्षता मसीहा को सौंप देते हैं। ऐसे संगठन के कार्यकर्ता अपने पुरखों के मिशन को कभी भी पूरा नहीं कर सकते। स्वयंभू नेता जनता को भीड़ दिखाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं मात्र इसलिए कि लोग उनकी भीड़ के आकर्षण में आकर उनका महिमामंडन करें। अगर भीड़ संगठन होता तो सबसे अधिक भीड़ आसाराम बापू राम और रहीम जैसे तथाकथित संतों के यहां भीड़ होती है किंतु वह संगठन नहीं होता। ऐसे स्वयंभू नेता के कुछ धूर्त बौद्धिक कलाकार कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा के तर्ज पर कहीं की भीड़ अपने संगठन से जोड़कर अपनी ताकत का इजहार करते हैं। कुछ लोग ऐसे सुप्रीमो नेताओं की घोर निंदा करते हैं किंतु उनके आचरण में भी सुप्रीमो गिरी निहित होती है वे स्वयं अपनी बातों को कार्यकर्ताओं पर थोपने में अड़े रहते हैं और संगठन की एक भी नहीं सुनते।बाबासाहेब डॉक्टर अंबेडकर ने संगठन की शक्ति, ईमानदारी, निष्ठा तथा अनुशासन पर फेडरेशन की कार्यकारिणी की बैठक में 25 मार्च 1953 में अलीपुर रोड दिल्ली में अपने संबोधन में कहा, “कार्यकर्ताओं में मुख्य रूप से अनुशासन और ईमानदारी इन दोनों का होना जरूरी है। फेडरेशन की नीतियों के खिलाफ खुलेआम अथवा गुप्त तरीके से काम करने वालों के लिए संगठन में कोई स्थान नहीं है। साथ ही एक और बात को ध्यान में रखें कि किसी भी संगठन की ताकत उसके सदस्यों की संख्या पर निर्भर नहीं करती बरन सदस्यों की ईमानदारी संगठन के साथ उनकी निष्ठा और अनुशासन के पालन पर वह निर्भर करती है। जिन्हें फेडरेशन की नीतियां पसंद नहीं है वह बेशक फेडरेशन छोड़कर चले जाएं लेकिन जो फेडरेशन के साथ रहना चाहते हैं वे संगठन के अनुशासन को कभी भंग न करें और साथ ही वे अपने हर व्यवहार में फेडरेशन के साथ ईमानदारी बरतें”कोई भी संगठन का कार्यकर्ता जब संगठन के उचित फोरम में अपनी बात न रखकर बाहर तमाम सवाल खड़े करते हैं ऐसे व्यक्तिवादी चरित्र के लोग संगठन का हित नहीं कर सकते। कोई भी संगठन चाहे वह सामाजिक अथवा राजनीतिक क्यों ना हो उसके कार्यकर्ता निर्धारित लक्ष्य को तभी प्राप्त कर सकता हैं जब वे संगठन की विचारधारा संगठन की नीति रणनीति और संगठन में लोकतंत्र का निर्वहन सत्य निष्ठा के साथ करता हो।डॉ आंबेडकर ऐसे व्यक्तिवादी चरित्र वाले नेताओं पर सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं,” यदि हम लोकतंत्र को अपने संगठन में लागू करना चाहते हैं तो हमें अपने सामाजिक और आर्थिक लक्ष्य वैद्य मार्ग से प्राप्त करने चाहिए कूटनीतिक उपायों से नहीं। हमारे देश में जितनी भक्ति जितना गुरुडम जितनी वीर पूजा और जितना अंधविश्वास है उतना किसी अन्य देश में नहीं है। धर्म में भक्ति’तथा वीर पूजा मुक्ति का साधन भले ही हो सकती है परंतु राजनीति मैं भक्ति और वीर पूजा अधोगति में ले जाने वाला अधिनायकवाद हो जाता है।”लक्ष्य प्राप्ति की रणनीति को उजागर करते हुए बामसेफ के संस्थापक यशकायी डी. के. खापर्डे अपने संबोधन में कहते हैं,”without paying price- social change is not possible अर्थात- कीमत चुकाए बगैर सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन संभव नहीं। Without social change- political power will not be captured. अर्थात- सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन के बगैर राजनीतिक शक्ति प्राप्त नहीं की जा सकती। Without political power- our rights bill not be achieved. अर्थात राजनीतिक शक्ति प्राप्त किए बगैर हम अपने अधिकारों को हासिल नहीं कर सकते। कोई भी स्वयंभू नेता अपनी धूर्तता तथा उसका भक्त अपने मूर्खता से फूले अंबेडकरी आंदोलन का लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता।
दयाराम पी.पी.आई. (डी)