देश भर से समय समय पर सफाई कर्मियों की वेतनबृद्धि व नियमितीकरण की मांग तथा अक्सर महीनों के बकाया वेतन के भुगतान की मांग उठते रहती है, तथा कई बार अपनी समस्याओं पर कोई सुनवाई न होने पर वे कभी कभार मजबूर होकर कुछ दिनों के लिए कार्य बहिष्कार कर अपनी समस्याओं के निराकरण का असफल प्रयास करते रहते हैं,और जब जब वे कार्य बहिष्कार करते हैं तब तब कुछ ही दिनों में पूरे शहर, गलियां कूड़े से पट जाती हैं,घर बाहर सब तरफ कूड़ा और गंदगी ही नजर आने लगती है, और लोगों को व नगर प्रशासन को महामारी फैलने का भय सताने लगता है तब उन्हें कुछ झूठे आश्वासन आदि देकर मना लिया जाता है और ये सीधे साधे लोग उन आश्वासनों पर भरोसा कर काम पर लौट आते हैं और इतने दिनों में फैली गंदगी को खुद ही ठिकाने लगाते हैं,लेकिन वो आश्वासन आश्वासन ही बनकर रह जाते हैं।
यह अंतहीन सिलसिला तब से चला आ रहा है जब से नगरीय व्यवस्था अस्तित्व में आई,पहले एक लंबे दौर तक इन लोगों ने लोगों के रोजमर्रा के मानव मल को भी अपने सिरों पर ढोया है,सीवर सिस्टम आने व पिट निर्माण व्यवस्था होने पर इन्हें इस कुप्रथा से तो मुक्ति मिली लेकिन आज भी इनका जीवन देश भर के लाखों शौचालयों को व्यवस्थित रखने में शौचालयों में ही गुजर जाता है,इसके अतिरिक्त जब आम जनमानस सुबह उठकर स्वच्छ हवा लेने के लिए सैर पर निकलते हैं ये लोग उसी समय से लोगों के घरों की गंदगी एकत्रित कर उन्हे गंदगी मुक्त करने के अभियान में जुट जाते हैं और इनका पूरा दिन इसी प्रक्रिया में गुजर जाता है,इसके अतरिक्त बाजारों को,गलियों को स्वच्छ रखना इन्हीं की जिम्मेदारी है,अस्पतालों से निकलने वाली गंदगी व अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठानों द्वारा उत्सर्जित कूड़े व गंदगी को भी यही लोग ठिकाने लगाते हैं,जिन दिनों पूरा देश कोरोनाकाल के दौरान घरों में कैद था ये उन दिनों भी अपनी जान की परवाह न करके अपने काम में जुटे थे।
इस काम के बदले हमारी सरकारों ने इनमे से अधिकांश की नियमित नियुक्ति की व्यवस्था समाप्त कर दी है, इनमें से ज्यादातर को इस बीमारियों और जान के जोखिम भरे कार्य के बदले लगभग आठ हजार रुपए प्रतिमाह के भुगतान की व्यवस्था है,उसके ऊपर भी कई जगह इनके ऊपर ठेकेदार नियुक्त किए गए हैं,जिस कारण इन्हें मुश्किल से 6 से 8 हजार रूपए प्रतिमाह ही मिल पाता है, और यही नाममात्र की धनराशि में इन्हे अपना व अपने परिवार का पालन पोषण,शिक्षा दीक्षा आदि की व्यवस्था करनी होती है,इन हालतों में ये लोग कैसे जीवन यापन कर रहे हैं या इन हालातों में इनके नौनिहालों का कैसा भविष्य होगा यह अंदाजा लगाना किसी भी संवेदनशील व न्यायप्रिय व्यक्ति के लिए कठिन नहीं होना चाहिए ।
अपनी इन्हीं मांगो को लेकर गत दिनों उत्तराखंड के हल्द्वानी नगर निगम के स्वच्छकों द्वारा अपनी वेतनवृद्धि व नियमितीकरण की मांगों को लेकर कार्यबहिष्कार कर दिया गया,शहर में कूड़ा फैलने व महामारियों के फैलने की आशंकाओं को लेकर किसी व्यक्ति ने जनहित याचिका डाल दी और न्यायालय ने भी स्वच्छकाें को तत्काल काम पर लौटने के निर्देश दे दिए,अन्यथा कार्यवाही को तैयार रहने की चेतावनी दे डाली,अब इन हालातों में इन वर्गों के पास कौन सा रास्ता रह जाता है जिससे ये अपनी समस्याओं से निजात पा सकें,इनके कार्य बहिष्कार के कारण लोगों को होने वाली परेशानियां तो सभी को नजर आती हैं लेकिन क्या कभी हमारे समाजसेवियों,शासन प्रशासन,न्यायपालिका,राजनीतिक दलों व संगठनों को इनकी अंतहीन ब्यथा भी समझ आ पाएगी,क्या इन्हे भी कभी न्याय मिल पाएगा।
एडवोकेट डा प्रमोद कुमार