बागेश्वर अनुसूचित जाति जन जाति शिक्षक एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष संजय कुमार टम्टा ने उत्तराखण्ड के शिक्षा मंत्री को एक मेल किया है उन्होंने मेल के माध्यम से राजकीय विद्यालयों में शैक्षिक गुणवत्ता बनाए रखने के मार्ग में आने वाली बधाएं व उनके समाधान के को लेकर मेल भेजा गया है! उन्होंने मेल में कहा है कि प्रदेश के राजकीय विद्यालयों (प्राथमिक से माध्यमिक तक) में उन्नत शिक्षण व्यवस्था हेतु एससी एसटी शिक्षक एसोसिएशन निम्नांकित 10 सुझाव प्रस्तुत करता है, जो निम्नवत हैं-1- प्रदेश के राजकीय विद्यालयों (प्राथमिक से माध्यमिक तक) में शिक्षक, प्रधानाध्यापकों एवं प्रधानाचार्य के पद बड़ी संख्या में रिक्त हैं. विदित हैं विद्यालयी शिक्षा प्राथमिक में 11,418 पद रिक्त हैं. 1386 इंटर कालेजों में 1000 से भी अधिक पद रिक्त हैं. अकेले बागेश्वर जिले में ही 61 इंटर कालेजों में प्रधानाचार्य के 58 पद रिक्त हैं. अल्मोड़ा जिले में 263 हाईस्कूल व इंटर कालेजों में से 230 प्रधानाध्यापक व प्रधानाचार्य के पद रिक्त हैं. अन्य जिलों के हाल भी यही हैं इनसे विद्यालयों में शिक्षण व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो रही है. छात्र हित में इन समस्त रिक्त पदों को शीघ्र ही भरा जाना चाहिए.2- विभाग में बड़े स्तर पर प्रधानाध्यापक प्रधानाचार्य के पद रिक्त होने के कारण इनका दायित्व प्रभारी के रूप में शिक्षकों पर है. इस अतिरिक्त कार्य के कारण वह अपने विषयों पर उचित ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. विदित है इन पदों पर पदोन्नति के मामले मा.न्यायालय में विचाराधीन हैं.ऐसी स्थिति में इनके जल्द समाधान की उम्मीद कम ही नजर आती है. इन पदों पर बड़ी संख्या में रिक्ति के कारण प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था लचर बनी हुए है. इसे सभालने के लिए विभाग द्वारा तैयार की गई वरिष्ठता सूची के आधार पर अस्थाई पदोन्नति पर विचार करते हुए इन्हें भरा जाना चाहिए. जिससे कि विद्यालयों में उचित शैक्षिक माहौल बनाया जा सके.3- विगत कुछ वर्षों से विद्यालयों पर सूचनाएं, सर्वे, रिपोर्ट आदि तैयार करने का भार बढ़ गया है. शिक्षणेत्तर गतिविधियों की संख्या भी अत्यधिक बढ़ गई है.साथ ही अन्य विभाग भी अपने जागरुकता कार्यक्रम विद्यालयों को स्थानांतरित कर देते हैं. जिससे विद्यालयों में अतिरिक्त कार्यों के चलते दैनिक पठन-पाठन प्रभावित हो रहा है. इनकी संख्या कम की जानी चाहिए.4-विद्यालयों में प्रत्येक माह मासिक परीक्षा आयोजित कराने से प्रतिमाह विद्यालय में छात्र और शिक्षकों के तीन-चार दिन परीक्षा और मूल्यांकन में व्यतीत हो रहे हैं. इसके स्थान पर पूर्व की भांति दो मासिक परीक्षा अर्धवार्षिक परीक्षा से पूर्व व दो मासिक परीक्षाएं अर्धवार्षिक परीक्षा के बाद आयोजित की जानी चाहिए.साथ ही कुछ विद्यालयों में गुणवत्ता सर्वेक्षण हेतु कराई जा रही परीक्षाएं और मूल्यांकन से भी शिक्षण कार्य बहुत प्रभावित हो रहा है. इसकी परीक्षाएं और मूल्यांकन में तीन चार दिन व्यतीत होते हैं. यह परीक्षा विद्यालय के शिक्षकों के निरीक्षण में होती है. जिसका मूल्यांकन बाहरी विद्यालयों के शिक्षकों से कराया जाता है.जिससे कई व्यवहारिक समस्याऐ भी उत्पन्न होती हैं.जैसे विषयाध्यापक का ना होना आदि, इन सबके चलते गुणवत्ता सर्वेक्षण वाली यह परीक्षा औपचारिक मात्र ही प्रतीत हो रहा है. इस सर्वेक्षण के कोई विशेष प्रभाव भी दिखाई नहीं देता है. इसलिए इसे बंद किया जाना चाहिए.5- प्रदेश के अटल उत्कृष्ट विद्यालयों में सीबीएसई पेटर्न द्वारा आयोजित पहली परीक्षा के कमजोर परीक्षा फल एवं अधिक शुल्क को देखते हुए छात्र इन विद्यालयों में प्रवेश लेने से कतरा रहे है. . इन स्कूलों से टीसी लेकर प्रवेश हेतु बच्चे आसपास के दूरस्थ स्कूलों में जा रहे हैं. इस वर्ष इन विद्यालयों में कक्षा 11 के प्रवेश में भारी गिरावट आई है. इन विद्यालयों में ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर छात्रों और बालिकाओं के लिए गणित की अनिवार्यता और गृह विज्ञान जैसे विषयों का अभाव आदि समस्याएं उत्तराखंड के ग्रामीण परिवेश के अनुकूल प्रतीत नहीं हो रही है इसलिए इन विद्यालयों को पुनः उत्तराखंड बोर्ड से जोड़ते हुए इनमें शैक्षिक गुणवत्ता बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिए.6- विद्यालयों में विज्ञान की पुस्तके अंग्रेजी माध्यम मैं होने के कारण पूर्व से हिंदी माध्यम में पढ़ रहे छात्रों को अत्यधिक परेशानी महसूस हो रही है. ऐसे में विज्ञान की पुस्तकों को हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषा में उपलब्ध कराया जाना चाहिए.7- विभाग में शिक्षक प्रशिक्षण की संख्या कम की जाए. इससे विद्यालयों के पठन-पाठन प्रभावित हो रहा है.इसका सर्वाधिक बुरा प्रभाव एकल विद्यालय शिक्षक व एकल विषयाध्यापक वाले विद्यालयों पर पढता है. इस अवधि में छात्र शिक्षण से वंचित रह जाते हैं.
8- शिक्षा विभाग के शैक्षिक कार्यों में गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) का हस्तक्षेप बंद किया जाना चाहिए. इनके द्वारा चलाए गए कार्यक्रमों से विद्यालयों में शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है.9- विद्यालयों के वार्षिक खेल कैलेंडर में खेल महाकुंभ, युवा कल्याण द्वारा आयोजित क्रीड़ा प्रतियोगिताए, विभागीय प्रतियोगिताएं, मुख्यमंत्री उदीयमान खेल प्रितियोगिता आदि सभी प्रतियोगिताऐ शिक्षकों व स्कूलों द्वारा ही संपन्न कराई जाती हैं. इनको अलग-अलग समय पर करने से शिक्षकों व स्कूलों का अत्यधिक समय व्यतीत होता है. छात्र हित में एक इन सभी प्रतियोगिताओं को संबंधित विभागों के समन्वय से एक साथ कराया जाना चाहिए.10-छात्रों के लिए निशुल्क पाठ्यपुस्तकों के अनेक दावों के बाद भी यह पुस्तकें सत्र आरंभ से पूर्व में कभी भी नहीं पहुंच पाती है. आगामी सत्र से प्रयास किया जाना चाहिए कि यह पुस्तकें माह मार्च में ही संबंधित विद्यालयों तक पहुंच जाए.अतः महोदय से विनम्रता पूर्वक अनुरोध है कि प्रदेश के राजकीय विद्यालयों के गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक परिवेश के मार्ग में आने वाली उपर्युक्त बाधाओं को दूर करते हुए. इन सुझावों पर विचार करने की कृपा कीजिएगा।