पंजाब आज दिनांक 08/12/2025 को बामसेफ का राष्ट्रीय अधिवेशन तीसरे दिन भी जारी रहा आज ऐतिहासिक किसान आंदोलन की उपलब्धियां और भविष्य की चुनौतियां विषय पर गंभीर मंथन किया गया। इस विषय पर संचालन प्रेमपाल गौतम ने किया और प्रस्तावना एमडी चंदनशिवे ने की, इस विषय पर मेवाती किसान मोर्चा के नेता शिफत खान, प्रोफेसर विनोद आर्या, हरियाणा के किसान नेता सुरेश कौथ ने विस्तार से प्रकाश डाला, इस विषय की अध्यक्षता करते हुए बामसेफ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुरेश द्रविड़ ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा अधिनियमित विवादास्पद 3 काले कृषि कानूनों के विरुद्ध भारतीय किसानों ने 2020 में एक लंबा आंदोलन किया, जिसमें देश भर के किसान भारी मात्रा में सहभागी थे, इसे रोकने के लिए सरकार ने आंदोलनकारी किसानों पर कई जगह सशस्त्र हमले भी किए, इस आंदोलन में लगभग 700 किसान शहीद हुए, उससे देशभर में जन आक्रोश फैला, परिणामस्वरुप 19 नवंबर 2021 को संसद ने उन्हें रद्द कर दिया और किसानों से वार्तालाप करने हेतु एक समिति का गठन किया समिति ने उन्हें सरकार की ओर से कई वादे भी किए और आंदोलन को समाप्त करने को कहा । किसानों ने आंदोलन समाप्त कर दिया, उसके बाद किसानों को कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करने की मांग पर चार दौर की बैठकें हुई, परंतु केंद्र सरकार आज भी न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए अभी भी तैयार नहीं है।उपरोक्त ऐतिहासिक घटनाक्रम का महत्वपूर्ण तथ्य यह है उक्त ऐतिहासिक किसान आंदोलन से पूंजीपतियों को किसानों पर अन्याय करने की अनुमति देने वाले काले कृषि कानून सरकार को वापस लेने पड़े ,परंतु जिन समस्याओं को सुलझाने के लिए यह आंदोलन खड़ा हुआ था, वे समस्याएं अभी भी जिंदा है। किसानों को पुराने कानून के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य उपलब्ध नहीं था और वह अभी भी नहीं है इसलिए एक सही किसान हित संरक्षण कानून की आवश्यकता आज भी है परंतु उस शक्तिशाली किसान आंदोलन को एक षड्यंत्र के तहत सरकार ने कुटिलता से समाप्त कर दिया। अब हमें सरकार की अलोकतांत्रिक और संविधान विरोधी नितियों और निर्णयों के विरोध में पुनः एक बड़े आंदोलन की आवश्यकता है,इस शक्तिशाली आंदोलन को पुनः कैसे खड़ा किया जाए, इस पर आज गहन चिंतन मनन विश्लेषण किया गया, भारत भर के किसानों को पुनः एकता स्थापित करनी होगी और किसान तथा मजदूरों को आपसी एकता कायम करनी होगी। किसान नेता सुरेश कौथ ने कहा कि न केवल मजदूर और किसानों को अपनी मजदूरी और खेती बचाने के लिए खड़ा होना होगा बल्कि देश को बचाने के लिए भी खड़ा होना होगा। कैसे हो फुले अंबेडकरी संगठनों का संगम अर्थात मूल निवासी बहुजन की विचारधारा और लोकतांत्रिक चरित्र का आग्रह ही फुले अंबेडकरी एकता का सूत्र है। इस विषय की अध्यक्षता करते हुए बामसेफ की राष्ट्रीय उपाध्यक्षा सुनीता कपरवाल ने कहा कि हमें संविधान और संविधानवाद, लोकतांत्रिक पद्धति और संस्थागत नेतृत्व तथा फुले अम्बेडकरी विचारधारा और आंदोलन तथा मूलनिवासी पहचान के आधार पर इकट्ठा होना चाहिए। इस विषय पर मजबूती के लिए मूलनिवासी बहुजन संगठनों की समन्वय एवं सहयोग समिति का गठन किया गया। फुले अम्बेडकरी संगठनों व किसान संगठनों के सभी साथियों को इकट्ठा करके ठोस रणनीति तैयार की जाएगी। इस विषय की प्रस्तावना पुष्पराज दहिवले ने की, अर्जक संघ बिहार के अध्यक्ष अरुण कुमार गुप्ता, भारतीय मुस्लिम परिषद के अध्यक्ष जावेद पाशा कुरेशी,मानव मुक्ति मिशन महाराष्ट्र के नितिन सावंत ने इस विषय पर अपना संबोधन किया। आज इस अवसर पर बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष आर एल ध्रुव, संजय मोहिते, कविता मढावी, नीलिमा बागड़े, सुनील कुमार, दयाराम, नितिन थाबलके, कुलविंदर सिंह, सरदार सुरेंद्र सिंह, सोढ़ी राम झल्ली, अशोक खेड़ा, गुरमीत सिंह आदि भी उपस्थित थे।

