छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ सरकार बेहतर शिक्षा प्रदान करने आवासीय छात्रों के लिए करोड़ों रुपए की बजट देती है ताकि आदिवासी बहुल इलाकों में रहने वाले बच्चों का भविष्य बेहतर और सुदृढ़ हो सके। लेकिन बीजापुर जिले में आदिवासी छात्रावास आश्रमों में रहकर पढ़ाई करने वाले बच्चों को चपरासी मजदूर समझकर काम करवाते हैं और ऐसे समय पर अधीक्षक भी गायब रहते हैं। जिन बच्चों को माता-पिता अपने बच्चों को आश्रम में रहकर अच्छी शिक्षा प्राप्त कर अपना भविष्य गढ़ सकें ऐसी सोच के साथ आश्रम स्कूल में भर्ती कराते हैं। मामला भोपालपटनम विकासखंड में संचालित बालक आश्रम वाडला और भोपालपटनम का है जहां चपरासियों द्वारा बच्चों से राशन सामान ढुलाई करते देखे गए और अधीक्षक भी नदारद मिले। मौके पर कुर्सी पर बैठ कर आराम फरमाते चपरासी से कहा गया कि बच्चों से का क्यों करवाते हो तो चपरासी ने कहा कि आप मुझसे बात नहीं कर सकते। जब चावल उठाकर लाते छात्रों से पूछा तो उन्होंने बताया कि हमेशा चपरासी ऐसा ही करते हैं। हालांकि अधीक्षक से पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि कुछ दिनों से बीमार चल रहे हैं इसलिए आश्रम में नहीं सोते चपरासियों के भरोसे छोड़कर जाते हैं। यह पहली मर्तबा नहीं है जब से अधीक्षक लक्ष्मण कुम्मर की पदस्थापना वाडला आदिवासी बालक आश्रम में हुई है तब से आजतक बालक आश्रम में नहीं सोते हैं। जिस कार्य के लिए जिला प्रशासन शिक्षक को अधीक्षक बना कर जिम्मेदारी दी गई है वहीं शिक्षक अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं। जिसके चलते बालक आश्रम में उपस्थिति दर्ज संख्या से से आधी से भी कम है। इस संबंध में आनंद सिंह सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग ने औपचारिक तौर पर चर्चा में कहा कि वर्षों से जमे आश्रम अधीक्षकों को 12 दिसंबर को जिला मुख्यालय पर बैठक आयोजित की गई है वर्षों से जमे अधीक्षक बदले जाएंगे।