देहरादून प्रकृति ने इस धरती में सुंदर सुंदर वादियां, पेड़ पौधे व खेत खलिहान दिए हैं वहीं इनको सजोने के लिए संघर्ष भरा मानव जीवन व नारी शक्ति भी दिया हैं। हम बात कर रहे हैं पहाड़ की महिलाओं की जिनका पूरा जीवन संघर्षों से भरा रहता है। पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी कहते है मेरा जीवन पहाड़ी ग्रामीण परिवेश का हैं मैंने अपनी माँ, भाभियां व गांव की बहु बेटियों को देखा है सुबह उठाना गाय, भैस को दुधाना, चाय बनवाना, पशुओं को चारा डालना, बच्चों को शुबह का नास्ता बनवाने और उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना, बच्चे स्कूल जाने के बाद घर की सफाई, भांडे बर्तन धोने के ततपश्चात पशुओं के चारे के लिए जंगल जाना। जंगल से आने के बाद घर के सदस्यों को दिन का खाना बनवाने, खाने के बात पशुओं को जंगल के लिए ले जाने से पहले गोबर निकालना, जंगल से पशुओं के साथ घर आते समय लकड़ी, घास लेकर आना, सांम को गाय, भैस को दुधाना, रात्री भोजन बनवाना व बर्तन धोने और खेत खलिहानों में गुड़ाई, निराई, फसलों को काटना उसे घर तक पीठ पर ले जाना तथा फसलों को धूप में सुखाकर कुटाई, सफाई आदि कार्य किए जाते है। ये होती हैं हमारे पहाड़ की नारी की जिंदगी। अपना पूरा जीवन कार्य करते हुए इस दुनियां को अलविदा कह देती हैं इस संघर्षभरे जीवन के कारण पहाड़ की नारी को पहाड़ की रीढ़ की हड्डी कहते हैं। किरन सोनी कहती हैं बचपन से ही हम घर के सभी कार्य अपने माँ, बहिने व भाभियों से देखकर सीखते हैं इसलिए ये सभी कार्य हमारे संस्कारों में निहित होते हैं ऐसे कार्य करने में हमे कोई दिक्कत नही होती हैं काम न होने पर चिंता बनी रहती हैं कि मेरा यह काम पूरा नही हो सका माँ पिता व सास ससुर क्या कहेंगे इन्ही कार्यो की बजह हम स्वस्थ्य रहते होंगे। आज शिक्षा ने महिलाओं की दशा व दिशा को सुधारा हैं जो कभी घर परिवार व खेत खलिहानों तक सिमिटि कर रहती थी आज देश दुनियां में जमी तो क्या आष्मान में उड़ रहे हैं और अपने स्वास्थ्य व भविष्य के लिए चिंतित रहती हैं उसी की बदौलत आज महिलाएं ऊँचे ऊँचे पदों पर कार्य कर रही हैं और स्वयं आत्मनिर्भर होकर समाज में एक नया आयाम स्थापित कर रहे है। जिंदगी खाली नही जाती हैं बल्कि कुछ न कुछ तजुर्बा, अनुभव व स्मृतियां दे जाती हैं जिनसे सीख लेकर आनेवाली पीढ़ी अपने सुनहरे भविष्य को सवार सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

