1 मई, मजदूर दिवस, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर वायसराय काउंसिल के मेंबर थे, इस दौरान उन्होंने मजदूर, किसान, महिलाओं के हित में अनेक ऐतिहासिक फैसले लिए, श्रम मंत्री की हैसियत से उन्होंने फैक्ट्रीयों में मजदूरों के लिए 12 से 14 घंटे काम करने के नियम को बदलवाकर 8 घंटे करवाया। महिला श्रमिकों के लिए मातृत्व ( मैटरनिटी लीव ) लाभ का प्रावधान करवाया,मजदूरों के लिए ” न्यूनतम मजदूरी कानून ” का प्रावधान, मजदूरों के लिए लड़ने के लिए ” Independent Labour Party ” का गठन किया गया। मजदूरों को हड़ताल करने का अधिकार को लेकर संघर्ष, बम्बई में म्युनिसिंपल कामगार यूनियन की स्थापना की गई। कर्मचारी राज्य बीमा ( Employees State Insurance ) का गठन किया गया । महंगाई भत्ता ( Dearness Allowance ) का प्रावधान करवाया, रोजगार कार्यालयों (Employees Exchange ) का गठन करवाना,अभ्रक खान श्रम कल्याण निधि ( Mica Mines Labour Welfare Fund ) का प्रावधान करवाना और ये सभी कार्य बाबा साहब डॉ अम्बेडकर जी के उन सभी मजदूरों के लिए करवाए,जो किसी भी जाति/वर्ण से संबंध रखते हैं, लेकिन बहुत ही दुखद बात यह है कि भारत की ट्रेड यूनियनों ने बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर द्वारा किए गए कार्यों का गुणगान न करके विदेशी मजदूर नेताओं का गुणगान किया। ऐसा क्यों किया, ऐसा इसलिए किया क्योंकि उनके मन-मस्तिष्क में जाति की संकीर्ण मानसिकता थी। बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर अछूत थे और अछूतों से नफरत थी, वह नफरत आज भी किसी न किसी रूप में बरकरार है। इसी मानसिकता के चलते ट्रेड यूनियनों के नेताओं ने अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों से कोई मजबूत नेतृत्व भी पैदा नहीं होने दिया। बहुत से ट्रेड यूनियन नेता कहने को तो कामरेड थे लेकिन व्यावहारिक तौर पर वे सच्चे कामरेड नहीं थे। कुछ कम्युनिस्ट नेता और ट्रेड यूनियन नेता बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर की अनुसूचित जाति और जनजाति तथा पिछड़े वर्गों की केंद्रीत राजनीति और हिन्दू समाज की आलोचनाओं से असहमत थे। यदि इन ट्रेड यूनियन नेताओं ने बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर से सामंजस्य स्थापित किया होता तो आज देश में मजदूरों की दुर्दशा नहीं होती। कुछ ट्रेड यूनियनों ने, खासकर कम्युनिस्ट ने जाति और वर्ग के बीच संबंधों को लेकर अंबेडकर की धारणा से असहमति व्यक्त की थी, कम्युनिस्टों का मानना था की जाति वर्ग के भीतर एक उप वर्ग है, इसलिए इसे वर्ग संघर्ष के संदर्भ में देखा जाना चाहिए, जबकि डॉ अंबेडकर ने जाति को वर्ग से अलग और सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण पहलू माना था। जाति, धर्म और सम्प्रदाय तथा क्षेत्र की भावना के रहते वर्ग संघर्ष पैदा नहीं हो सकता। वर्ग संघर्ष पैदा करने के लिए हमें जाति, धर्म, सम्प्रदाय और क्षेत्र तथा भाषा की भावना से ऊपर उठकर समस्याओं को समझना होगा तथा इनके कारणों को जानकर इनके समाधान की दिशा में बढ़ना होगा। डॉ आंबेडकर हिंदू धर्म की रूढ़िवादी सोच और जाति व्यवस्था की कड़ी आलोचना करते थे, जिससे कुछ हिंदूवादी और पारंपरिक संगठनों को ठेस पहुंचती थी, यह भी एक बड़ा कारण था कि कुछ ट्रेड यूनियन नेता उनसे दूरी बनाए रखते थे, दूरी ही नहीं बल्कि बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर से नफरत भी करते थे, इस नफरत के चलते उन्हें कार्ल मार्क्स, स्टालिन तो मंजूर थे लेकिन राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर मंजूर नहीं थे। बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर मजदूरों को सत्ता के केंद्र में देखना चाहते थे अर्थात वे मजदूरों की सत्ता देश में चाहते थे, बाबा साहब डॉ अम्बेडकर ने इस राजनीतिक दृष्टिकोण के कारण अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों के अधिकारों पर ध्यान केंद्रित किया और इन वर्गों को साथ लेकर केंद्र में एक मजबूत सरकार बनाने के पक्षधर थे, यह दृष्टिकोण कुछ ट्रेड यूनियन नेताओं को मंजूर नहीं था, उनकी सोच बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर की सोच के विपरित थी अर्थात कुछ ट्रेड यूनियन के नेताओं के विचारों से मेल नहीं खाती थी। बाबासाहेब डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक न्याय और समानता पर जोर देते थे ,लेकिन कुछ ट्रेड यूनियन नेताओं को यह पसंद नहीं था क्योंकि वे सामाजिक न्याय को आर्थिक न्याय से अलग नहीं मानते थे ,जबकि सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय दो अलग-अलग बिंदु है। इसके कारण भी बाबा साहब अंबेडकर का कम्युनिस्ट नेताओं और ट्रेड यूनियन नेताओं से सामंजस्य से स्थापित नहीं हो सका,काश यह सामंजस्य उस समय स्थापित हो गया होता तो आज का भारत कुछ अलग तरह का भारत होता। बाबासाहेब डॉक्टर अंबेडकर ने अनुसूचित जाति, जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों को बौद्ध धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया, जो कुछ ट्रेड यूनियनों के लिए भी एक आलोचना का बिंदु था क्योंकि वे इसे धार्मिक और सामाजिक विभाजन के रूप में देखते थे। कुल मिलाकर देखा जाए तो ट्रेड यूनियन नेताओं के डॉक्टर अंबेडकर के विचारों से परहेज के पीछे उनकी अलग-अलग विचारधारा, राजनीतिक दृष्टिकोण और सामाजिक न्याय की अलग-अलग समझ थी। बहुत से ट्रेड यूनियन नेताओं को जातीय प्रेम भी था, जिसके चलते हुए वे बाबा साहब अंबेडकर के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं करना चाहते थे। ट्रेड यूनियन नेताओं को आज सबक लेना चाहिए और आपसी तालमेल बनाते हुए बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के विचारों को अपनाते हुए, मजदूरों की एकता को मजबूत करना चाहिए और देश में मजदूरों की सत्ता को कम करना चाहिए। देश और दुनिया के मजदूरों को श्रम दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।
सुरेश द्रविड़
संयोजक
NCCMBO

