
लुधियाना (पंजाब) मू० अजीतराम का जन्म ०१-०४-१९४६ को पंजाब प्रांत के जनपद जालंधर शहर तहसील नकोदर के एक गांव मेहतापुर में पिता भागराम और माता कर्तारी देवी की कोख से हुआ था। वे पांच भाई थे। बहुजन आन्दोलन की दृष्टि से सारे के सारे भाई एक से बढ़कर एक थे। अब तक चार भाई यशकायी हो चुके हैं। उनकी जीवन-संगिनी मीना कुमारी बहुजन आन्दोलन में उनके साथ उनकी छाया की तरह रहीं। उनके तीन बेटे और एक बेटी सभी के सभी विवाहित और सेटेल्ड हैं। उन्होंने सन् १९६५ में रेलवे विभाग में नौकरी ज्वाइन किया और ३१-०३-२००६ में रेलवे विभाग से सेवानिवृत्त हुए। वे लम्बे समय से मधुमेह रोग से पीड़ित थे। उन्होंने बामसेफ संघठन में सुरुवाती दौर से जुड़े। जब मू० काशीराम बामसेफ संघठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो मू. अजीत राम बामसेफ वालंटियर फोर्स के कमांडर थे। मू. काशीराम ने जब बामसेफ संगठन का राजनीतिकरण करना शुरू किया तो उन्होंने मू. डी.के.खापडे, सरदार तेजेंद्र सिंह झल्ली, एस.एफ.गंगावाने तथा बी.डी.बोरकर के साथ काशीराम से अलग होकर रजिस्टर्ड बामसेफ का गठन किया। वे संयुक्त उत्तर प्रदेश बामसेफ के अध्यक्ष भी रहे। उनके चरित्र की एक खासियत थी कि वे जैसे अन्दर से थे, वैसे बाहर से भी थे। वे संगठन के अन्दर अपनी बातें बिना किसी लाग लपेट के कहने में जरा भी संकोच नहीं करते थे। संगठन में जब-जब उतार-चढ़ाव आया उन्होंने उसे हल करने का भगीरथ प्रयास भी किया। सबसे बड़ी बात यह कि वे पद्लोलुपता से बहुत दूर थे। सांगठनिक परिस्थितियों ने ही उन्हें एकबार बामसेफ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए मजबूर किया। मधुमेह की बीमारी उनके आन्दोलन में बाधा बनी। सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें बेडरेस्ट करना उनकी मजबूरी बन गयी। वे बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर और राष्ट्रपिता फूले के कारवां को आगे ले जाने में अपने जान की बाजी लगा दी। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में निडरता और निर्भीकता स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती थी। 8 जुलाई 2025 का वह मनहूस दिन उनके जीवन का अंतिम दिन था। वे इसी ८ जुलाई के दिन ही सायं सी.एम.सी.हास्पिटल लुधियाना में यशकायी हो गये। बहुजन आंदोलन में उनका त्याग और समर्पण हमेशा हमेशा के लिए याद किया जाएगा। दुख की इस घड़ी में बामसेफ और उसके आप सूट संगठन उन्हें अदरांजलि अर्पित करते हैं। उनका परिवार अपने अभिभावक के पदचिन्हों पर चलता रहे, हम सभी की ऐसी कामना है।