
नई दिल्ली दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिनांक 2 जुलाई 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए मौलाना आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज़ (MAIDS) को निर्देश दिया है कि वह 22.12.2021 को प्रकाशित अपने पुराने भर्ती विज्ञापन को रद्द करे और केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (शिक्षकों के पदों में आरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार नई भर्ती प्रक्रिया शीघ्र प्रारंभ करे। यह निर्णय सोशल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (SDTF) द्वारा दायर याचिका W.P.(C) 869/2022 पर सुनाया गया।
याचिकाकर्ताओं ने यह मामला उच्च न्यायालय में इस आधार पर उठाया था कि MAIDS द्वारा की जा रही भर्ती प्रक्रिया में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्गों के लिए आरक्षण के वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है। भर्ती की विज्ञप्ति में आरक्षण नीति के अनुपालन का अभाव था, जो 2019 अधिनियम के स्पष्ट दिशा-निर्देशों के विरुद्ध था। यह मामला न केवल संवैधानिक अधिकारों की रक्षा से जुड़ा था, बल्कि शिक्षा क्षेत्र में अवसर की समानता सुनिश्चित करने के संघर्ष का प्रतीक भी बना। संस्थान की ओर से न्यायालय में प्रस्तुत किया गया कि वह अब उक्त विज्ञापन के अंतर्गत चयन प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाएगा और 2019 अधिनियम के तहत नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करेगा। यह निर्णय संस्थान की गवर्निंग बॉडी की 16 अप्रैल 2025 की बैठक में लिया गया था। इससे यह स्पष्ट हो गया कि संस्थान अब पहले की असंवैधानिक प्रक्रिया को वापस ले रहा है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आनंद नंदन ने न्यायालय के समक्ष यह आशंका जताई कि जब तक नई प्रक्रिया पूरी नहीं होती, संस्थान अस्थायी (ad-hoc) नियुक्तियाँ जारी रख सकता है, जिससे मूल उद्देश्य को क्षति पहुँच सकती है। इस पर संस्थान की ओर से पेश अधिवक्ता सुश्री अवनीश अहलावत ने न्यायालय को आश्वस्त किया कि ऐसी नियुक्तियाँ केवल संस्थान की शैक्षणिक गतिविधियों को बनाए रखने हेतु की जाएंगी और इनकी अधिकतम अवधि नौ (9) माह से अधिक नहीं होगी। साथ ही, यह नियुक्तियाँ नियमित भर्ती प्रक्रिया के अंतिम परिणाम के अधीन रहेंगी। न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने यह मानते हुए कि याचिकाकर्ताओं की शिकायतें संतुष्ट कर दी गई हैं, इस याचिका को उपरोक्त टिप्पणियों और संस्थान द्वारा दर्ज कराए गए आश्वासनों के आधार पर निस्तारित कर दिया। न्यायालय ने साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब सभी लंबित याचिकाएं समाप्त मानी जाएंगी और अगली सुनवाई की तारीख (21.11.2025) को रद्द कर दिया गया है। सोशल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (SDTF) ने इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे भारत के संवैधानिक ढांचे के अनुरूप सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक जीत बताया है। SDTF ने कहा कि यह निर्णय दर्शाता है कि जब शिक्षक और नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित होकर विधिक और लोकतांत्रिक तरीकों से संघर्ष करते हैं, तो न्याय प्रणाली उस संघर्ष को न्यायिक मान्यता देती है। यह फैसला आरक्षण को एक मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार करता है, न कि किसी कृपा के रूप में। SDTF ने यह भी कहा कि इस निर्णय से शिक्षा क्षेत्र में नियुक्तियों में पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और समान अवसर के सिद्धांतों को मज़बूती मिलेगी। SDTF आगे भी देश के अन्य संस्थानों में यदि आरक्षण नीति का उल्लंघन होता है, तो उसके खिलाफ आवाज़ उठाने और न्यायिक कार्यवाही करने से पीछे नहीं हटेगा।