कोटद्वार गढ़वाल आमजन के बीच मित्रता, सेवा, सुरक्षा के स्लोगन पर काम करने वाली उत्तराखंड पुलिस, जब आम जनता के साथ बदले की भावना से पुलिसिया कार्रवाई करती है तब कोटद्वार गढ़वाल के देवरामपुर गांव जैसे प्रकरण सामने आते हैं, जिसमें पुलिस की एकपक्षीय कार्यवाही से आक्रोशित दलित समाज की महिलाओं के विरोध-प्रदर्शन करने से नाराज पुलिस बदले की भावना से कोटद्वार गढ़वाल के देवरामपुर गांव में दलित बस्ती की 19 महिलाओं सहित कुल 23 लोगों पर पुलिस के काम में व्यवधान उत्पन्न करने सहित विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर आनन-फानन में उन्हें जेल भेज देती है, साथ ही दलित बस्ती में पुलिस आतंक का माहौल बनाकर गरीब मेहनतकश लोगों को आतंकित कर देती है, सवाल यह भी उठता है कि 22 अक्टूबर की रात्रि को कोटद्वार पुलिस की एकपक्षीय कार्यवाही से नाराज होकर पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वाली महिलाएं गरीब, मेहनतकश, अनुसूचित जाति की न होकर अन्य सक्षम समाज और जातियों से संबंधित होती तो क्या तब भी कोटद्वार पुलिस उतनी ही तत्परता से कार्यवाही करते हुए 19 महिलाओं सहित 23 लोगों पर मुकदमा दर्ज करके उन्हें जेल भेज देती? इसका जवाब है बिल्कुल नहीं, क्योंकि तब उनकी पैरवी करने के लिए दर्जनों, सैकड़ों नेताओं पूंजीपतियों की फौज कोतवाली में डेरा डालकर सबकुछ निपटा लेते, लेकिन जिन 19 महिलाओं सहित 23 लोगों पर कोटद्वार पुलिस ने विभिन्न धाराओं के साथ मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेजा है,वो सभी लोग बहुत ही गरीब मेहनतकश अशिक्षित अनुसूचित जाति समाज से आते हैं, जिनके पास न पैरवी करने वाले नेता थे न पूंजीपति इसलिए वे पुलिसिया कार्रवाई का शिकार होकर जेल में पड़े हैं, और उनके परिजन कोर्ट, कचहरी, वकीलों के दर पर भटक रहे हैं, उक्त प्रकरण की अगर उच्च स्तरीय जांच हो जाए तो पता चलेगा कि समाज में आम,गरीब,मेहनतकश दबा-कुचला दलित वर्ग किस प्रकार पुलिस व प्रशासनिक भेदभाव का शिकार हो रहा है। पुलिसिया धमक का ये मामला उत्तराखंड और उत्तर- प्रदेश की सीमा से लगे ग्राम देवरामपुर, पोस्ट ऑफिस शिवराजपुर कोटद्वार गढ़वाल का हैं, जहां अनुसूचित जाति के दर्जनों परिवार दशकों से निवासरत हैं।
दीपावली से पूर्व 19 अक्टूबर से ही राहुल गुसाईं, आशीष डबराल, डबल सिंह उर्फ डबली सहित कई अज्ञात युवाओं द्वारा जाति सूचक गालियों के साथ अनुसूचित जाति की बस्ती की तरफ जानबूझ कर पटाखे छुड़ाए जा रहे थे, कई बार दुर्घटना का हवाला देकर उन्हें ऐसा न करने को बोला भी गया, लेकिन वो नहीं माने और दलित परिवारों को आतंकित करने की नियत से बार- बार मोहल्ले के निकट आकर हुड़दंग करते रहे। 21 अक्टुबर को भी राहुल गुसाईं, आशीष डबराल, डबल सिंह उर्फ डबली सहित कुछ अज्ञात युवाओं ने दलित बस्ती के युवाओं महिलाओं को गंदी-गंदी जाति सूचक गालियां दी गई, और बस्ती को आग लगाने की धमकी दी गई, इस बीच दोनों पक्षों में विवाद की स्थिति भी पैदा हुई। 22 अक्टूबर दोपहर में गांव की कुछ महिलाओं और पुरुषों ने कोतवाली कोटद्वार में जाकर उनके साथ हो रहे जातिय उत्पीड़न की शिकायत की गई, लेकिन कोटद्वार पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिए बिना दलितों की रिपोर्ट भी दर्ज नहीं की गई, जबकि नामजद आरोपियों ने गांव के कुछ लोगों के खिलाफ जाफरा पुलिस चौकी जो उत्तर- प्रदेश में तहरीर देकर उल्टा उन्हें ही फंसाने की कोशिश की गई। 22 अक्टूबर 2025 रात को पुनः देवरामपुर शिवराजपुर कोटद्वार गढ़वाल में अनुसूचित जाति एवं कुछ उपरोक्त नामजद सामान्य जाति के लोगों के बीच हुए विवाद की सूचना पर जब कोटद्वार पुलिस पहुंची तो पुलिस समझौते कराने की नियत से एकपक्षीय कार्यवाही करने लगी, जिससे गांव की महिलाओं एवं पुरुषों ने इसका विरोध किया तो पुलिस द्वारा महिलाओं के साथ धक्कामुक्की व डंडे से वार कर उनको ही धमकाया शुरू कर दिया, जिस पर दलित महिलाएं आक्रोशित हो गई और उन्होंने पुलिस द्वारा दबंग आरोपियों के साथ मिलकर की जा रही कार्यवाही का विरोध किया, अगले दिन जब दलित समाज की दर्जनों महिलाएं एवं पुरुष सामान्य जाति के लोगों द्वारा उनके साथ हो रहे जातिय उत्पीड़न की शिकायत लेकर कोतवाली कोटद्वार पहुंचे तो पुलिस द्वारा महिलाओं के द्वारा 22 अक्टूबर 2025 की रात्रि में पुलिस की एकतरफा कार्यवाही के विरोध में आक्रोशित होकर किए गए प्रदर्शन का बदला लेते हुए, पुलिस ने बदले की भावना से कोटद्वार कोतवाली पहुंचे सभी महिला पुरुषों को हिरासत में लेकर उन पर दुर्भावनावश विभिन्न धाराओं में मुकदमा पंजीकृत कर दिया, उक्त सभी अनुसूचित जाति के लोग गरीब मेहनतकश हैं, जिनके साथ कुछ सामान्य जाति के दबंग लोगों द्वारा मारपीट की गई और उनका लगातार जातिय उत्पीड़न किया जा रहा था, जिसकी तहरीर भी उनके द्वारा दी गई थी, लेकिन कोटद्वार पुलिस द्वारा जातिय उत्पीड़न के गंभीर विषय को नजरअंदाज करते हुए अनुसूचित जाति की महिलाओं द्वारा पुलिस पर उचित कार्यवाही न किए जाने से आक्रोशित होकर किए गए विरोध प्रदर्शन को बढ़ाचढा कर प्रस्तुत करते हुए, अनुसूचित जाति के गरीब मेहनतकश परिवार की महिला पुरुषों पर मुकदमा पंजीकृत कर उन्हें 23 अक्टूबर को पौड़ी जेल भेज दिया, साथ ही पुलिस द्वारा दलितों की बस्ती से लोगों को आतंकित करते हुए अन्य लोगों को भी पकड़ पकड़ कर उठाया गया, पुलिस की उक्त कार्यवाही से साफ नजर आता है कि पुलिस सीधे-सीधे बदले की भावना से उन लोगों पर कानूनी कार्यवाही कर रही है, जो कि न्यायोचित नहीं है, वहीं गांव में हुए विवाद के मुख्य नामजद आरोपी जो सामान्य जाति के दबंग लोग हैं जिन्होंने अनुसूचित जाति बस्ती को आग लगाने व उन्हें जाति सूचक गालियों से अपमानित कर उनके साथ मारपीट की गई, वे आज भी खुलेआम आजाद घूम रहे हैं जबकि दलित बस्ती के अधिकांश महिला पुरुषों को पुलिस द्वारा बंद किया जा चुका है, कोटद्वार पुलिस ने बदले की भावना से एकतरफा कार्यवाही करते हुए गांव में आतंक का माहौल बना दिया गया है। 25 अक्टुबर को अनुसूचित जाति के विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक संगठनों से जुड़े लोगों ने देवरामपुर कोटद्वार की दलित बस्ती के लोगों के साथ हुई जातिय उत्पीड़न की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के विरोध में तहसील पहुंचकर विरोध प्रदर्शन करते हुए उपजिलाधिकारी की अनुपस्थित में तहसीलदार कोटद्वार के माध्यम से पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड,जिलाधिकारी गढ़वाल, पुलिस अधीक्षक गढ़वाल, अनुसूचित जाति जनजाति आयोग उत्तराखंड, मानवाधिकार आयोग उत्तराखंड, राज्य महिला आयोग उत्तराखंड
को ज्ञापन भेजकर जातिय उत्पीड़न के उक्त प्रकरण की उचित जांच की मांग करते हुए कोटद्वार पुलिस द्वारा बदले की भावना से अनुसूचित जाति के आम गरीब महिला पुरुषों पर हुए मुकदमों को निरस्त कर नामजद आरोपियों के खिलाफ sc,st एक्ट सहित विधिसंवत धाराओं में मुकदमा पंजीकृत कर उचित वैधानिक कार्यवाही किए जाने की मांग की गई। ज्ञापन में कहा गया कि उक्त प्रकरण में कोटद्वार पुलिस द्वारा बदले की भावना से की गई एकतरफा कार्यवाही से अनुसूचित जाति के लोगों एवं संगठनों में गहरा रोष व्याप्त है, अगर समय रहते शासन-प्रशासन द्वारा इस मामले में उचित कार्यवाही नहीं होती है, और दलित परिवारों को न्याय नहीं मिलता है तो पीड़ित परिवार एवं अनुसूचित जाति के लोग विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर वृहत आंदोलन को बाध्य होंगे, जिसकी समस्त जिम्मेदारी शासन प्रशासन की होगी।
विकास कुमार आर्य
ब्यूरो प्रमुख गढ़वाल मंडल
साप्ताहिक वंचित स्वर

