भागलपुर।बिहार संत रविदास महासभा के बैनर तले संत शिरोमणि रविदास जी की 646 वीं जयंती मनाई गई।लालकोठी स्थित संत रविदास आश्रम में उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि के बाद उनके विचारों एवं उपदेशों पर विस्तार पूर्वक चर्चा हुई।इस मौके पर महासभा के संरक्षक मुख्य वक्ता डॉ.विलक्षण रविदास ने कहा कि संत रविदास मध्ययुग में श्रमण संस्कृति एवं कर्मवाद के महान प्रवक्ता,मानवतावाद और समानता के ओजस्वी कवि,सत्य और अहिंसा के पुजारी, भारतीय समाज के महान सुधारक थे.संत रविदास ने बराबरी के समाज का सपना देखा था।उन्होंने विस्तार से संत रविदास के दोहों को उद्धृत करते हुए बातें रखी।संत रविदास जी समाज के विकास के लिए काल्पनिक ईश्वर और देवी-देवताओं की पूजा का विरोध करते हुए सच्चे और सहज मन बनाने पर जोर देते हुए कहते हैं– “मनहिं पूजा मनहिं धूप,मनहिं सेऊ सहज सरुप।पूजा अरचा न जांनू तोरी,कह रैदास कौन गति मोरी।”बहुजन समाज विरोधी ब्राह्मणवादी पूजा- प्रसादऔर कर्मकांड का विरोध करते हुए वे कहते हैं-रामहिं पूजा कहां चढ़ाऊं,फल और फूल न अनुपम पाऊं।दूधत बछरो थनहु जुठारो,पहुप भंवर,जल मीन बिगारो।।” समाज में प्रचलित जाति- विभेद, ऊंच-नीच और छुआछूत का विरोध करते हुए संत रविदास कहते हैं कि जब तक समाज से जाति विभेद और ऊंच-नीच की भावना नहीं मिटेगी,तब तक मनुष्य मनुष्य के बीच में प्रेम, मित्रता, भाईचारा और शांति की स्थापना नहीं हो सकती। संत जी कहते हैं-“जात जात में जात हैं,ज्यों केलन में पात।रविदास मनुख न जुर सकैं,जों लौं जात न जात।।”सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक गुलामी का विरोध करते हुए संत जी उसे बहुत बड़ा पाप कहते हैं और उसे प्रेम और मित्रता की स्थापना में सबसे बड़ा बाधक मानते हैं।वे कहते हैं-“पराधीन पाप है,जान लेहु रे मीत।रविदास दास पराधीन सों, कौन करे है प्रीत।पराधीन कौ दीन,क्या पराधीन बेदीन।
रविदास दास पराधीन को,सबहिं समझै हीन।।”
इसलिए संत जी समतामूलक, लोकतांत्रिक एवं कल्याणकारी राज- व्यवस्था कायम करने की कामनाएं करते हैं और कहते हैं-“ऐसा चाहूं राज मैं,मिले सबन को अन्न।छोट- बड़ सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न।।”उन्होंने ईश्वरवाद और भाग्यवाद का विरोध किया और उसकी जगह मेहनत एवं श्रम को सुख-समृद्धि और विकास का आधार मानते हुए उसे ईश्वर का महत्व प्रदान किया।श्रम की महत्ता पर जोर देते हुए वे कहते हैं–“स्रम कह ईसर जानि के,जऊ पूजहिं दिन रैन।रविदास तिनहिं संसार महु,सदा मिलहिं सुख-चैन।।”
वक्ताओं ने इस मौके पर भाईचारा, समतामूलक एवं लोकतांत्रिक भारत का निर्माण करने हेतु संघर्ष करने और भारत को अन्धविश्वास,भाग्यवाद, पूजा-कर्मकांड और ब्राह्मणवाद से मुक्त कर कर्मवाद एवं श्रमण संस्कृति की स्थापना करने का संकल्प लेने का आह्वान किया.
मंच संचालन रामानंद पासवान और प्रमोद राम ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता -महेश अंबेडकर ने किया।अन्य वक्ताओं में थे-डॉ.संजय रजक,डॉ.चंद्रकिशोर,विष्णु रजक,अशोक आलोक, सेवा निवृत्त इंजीनियर डीपी मोदी,अरुण कुमार दास अभियोजन पदाधिकारी,रंजन दास,नीलम भारती, सत्य नारायण दास, दीपक प्रभाकर,प्रीतम कुमार,सोहिल दास,रंजीत रजक,संजय यादव,मीना कुमारी,सार्थक भरत,वीरेन्द्र कुमार गौतम,सोनम राव,प्रवीण कुमार यादव पंकज कुमार दास सहित कई एक ने.मौके पर सैकड़ों मौजूद थे।