‘यत्र नार्यन्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता’ जैसी बातें भले ही किताबों में हम पढ़ते आए हों पर यथार्थ स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत नज़र आती है।और इसके लिए हमें कोई गहन अन्वेषण की आवश्यकता नहीं है, अपने चारों ओर थोड़ा नज़र घुमाने पर आप हक़ीक़त से रूबरू हो जाते है।वर्ष 2022 में अगर देखें तो वैश्विक रूप से प्रकाशित ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत की स्थिति 146 देशों की सूची में, 135वें स्थान पर है। इससे आप समझ सकते है, मौजूदा परिप्रेक्ष्य में शुरुआती उक्ति का कहीं कोई साम्य नहीं है।
शिक्षा ने कुछ हद तक महिलाओं की स्थिति बदलने की कोशिश की है, पर यह स्थिति, एक स्तर पर जाकर ख़त्म हो जाती है।शिक्षा से महिलायें पढ़ लिख गई है, निचले से लेकर ऊपर तक के सरकारी ओहदों पर पहुँच चुकी है, पर क्या इससे उनकी प्रति लैंगिक भेदभाव में कोई कमी आयी है?
अधिकतर कार्य क्षेत्रों में में उन्हें दोयम दर्जे का ही समझा जाता है।प्रशासनिक स्तर पर उन्हें अपने सहकर्मी पुरुषों से कमतर आंका जाता है।जबकि हमें विश्व में हुए कई शोधों से पता चलता है, कि लीडरशिप जैसे मसलों में महिलायें बेहतर साबित हुई है और इसकी तस्दीक़ आप अपने घरों में माताओं और बहनों की मैनेजमेंट स्किल से आसानी से समझ सकते है।कोविड के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री जैसिंडा आर्डर्न ने जिस तरह का नेतृत्व दिखाया क्या उस दौर में आपको उनकी टक्कर का कोई प्रधानमंत्री दिखा था!
महिलाओं की मौजूदा ख़राब स्थिति के लिए अगर आप बुनियादी सामाजिक तानेबाने को गौर से देखें तो कुछ हद तक कारणों को समझा जा सकता है।निचले मध्यमवर्गीय परिवारों में एक बेटी के पैदा होते ही शायद ही उसकी शिक्षा के बारे में चिंता जताई जाती है।उनकी चिंता अपनी बेटी की शादी को लेकर ज़्यादा होती है।यहाँ तक कि, सुकन्या धन योजना(उच्चतम ब्याज दर योजना) तक में धनराशि एक बालिका के 21 वर्ष पूर्ण होने पर मिलती है, जबकि अच्छी शिक्षा की आवश्यकता उसे पहली कक्षा से है।इससे हम देख सकते है कि परिवारों और यहाँ तक की योजनाए भी एक ग़लत रिवाज़ को ही आगे बढ़ाने का काम परोक्ष रूप से कर रहीं है। बेहतर होता कि, बचपन से ही सरकारें बालिका शिक्षा पर अधिक जोर देती।
लैंगिक भेदभावों की शुरुआत घरेलू स्तर पर ही शुरू हो जाती है, जब एक लड़के को अलग और लड़की को अलग कार्यों के लिए तैयार किया जाने लगता है।लड़कियों पर पाबंदियाँ उम्र दर उम्र बढ़ती जाती है जबकि लड़को के लिए यही, उसी अनुपात में कम होती जाती है।आगे बढ़ने और लोगो से जुड़ने के मौक़े लड़कियों की उम्र बढ़ने के साथ लगातार कम होते जाते है।और जब वो लड़कियाँ अपने परिवेश इत्यादि से अच्छे से वाक़िफ़ ही नहीं होंगी और हाज़िर है कि उनका काम चाक रसोई तक ही सीमित होगा तो हम कैसे सामाजिक परिवेश में उनका बराबर का स्थान देख पायेंगे।अशोक पांडे की लिखी किताब ‘तारीख़ में औरत’ हर व्यक्ति ख़ासकर पुरुषों को जरूर पढ़नी चाहिए जिसमें आप विगदिस फिनबोगेदोतोर(आइसलैंड एवं विश्व की प्रथम लोकतांत्रिक रूप से चुनी राष्ट्रपति) से लेकर मारिया मांदिलीवा( आवर्त सारणी बनाने वाले मैनडीलेव की माँ) को जान कर ये समझ पायेंगे कि इतिहास ने भी महिलाओं के नेतृत्व को ख़ुद पीछे धकेला है।
स्कूलों और विश्वविद्यालयों का किसी भी व्यक्तित्व निर्माण में बहुत वाज़िब रोल होता है, और वहाँ पर पढ़ाने वाले शिक्षकों का सीधे तौर पर व्यक्तित्व निर्माण में अहम योगदान होता है।इसलिए स्कूलों और शिक्षकों की ये ख़ुद में पहली ज़िम्मेदारी होती है कि, इन शिक्षा केंद्रों को महज़ ज्ञान देने का स्थान ना समझे बल्कि, एक व्यक्तित्व और बेहतर सोच निर्माण का संसाधन समझें। स्कूलों या विश्वविद्यालयों में केवल गोष्ठियों या निबंध प्रतियोगिता करवाना भर केवल ख़ानापूर्ति भर है, नतीजा जिसका शून्य होता है।इन स्थानों पर ऐसे आयोजन करवाने पड़ेंगे जिससे सीधे तौर पर महिलाओं को नेतृत्व प्रदर्शन का मौक़ा मिले और बाक़ी लड़कियों के लिए जिससे उदाहरण तय हो।उदाहरणतः हाल में छात्रसंघ चुनावों में उत्तराखण्ड के एक बड़े महाविद्यालय में छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में एक बालिका का चुना जाना, इससे बाक़ी बालिकाओं में भी परोक्ष रूप से एक नेतृत्व क्षमता का निर्माण होता है।
इसलिए शैक्षिक संस्थाओं को स्वयं अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर, छात्राओं के लिए ऐसे प्रयास किए जाने की आवश्यकता है, जिससे सीधे तौर पर महिला सशक्तिकरण को बल मिले, इसमें विभिन्न एनजीओ की सहायता ली जा सकती है, महिला लेखिकाओं से सीधे तौर पर विमर्श एक अन्य ज़रिया हो सकता है।यहाँ तक मेरे निजी विचार में महिला शिक्षकों और प्राध्यापकों द्वारा इसकी संस्थागत तौर पर निर्भर ना रहकर, स्वयं के प्रयास किए जाने की ज़रूरत है।आख़िर वह वृक्ष जब भी फल देना शुरू करें कम से कम बीज रोपने का कार्य तो शिक्षक और शैक्षणिक संस्थाये कर ही सकती है।
दीपक कुमार – असिस्टेंट प्रोफेसर भौतिक विज्ञान राजकीय महाविद्यालय नारायण नगर पिथौरागढ़