
कोटद्वार। आज के दिन ही 11 अप्रैल 1827 को उन्नीसवीं सदी के प्रारंभिक चरण में महाराष्ट्र में जन्में क्रांतिकारी समाज सुधारक ज्योतिबा फुले की 197 वीं जयंती के अवसर पर शैलशिल्पी विकास संगठन द्वारा सिम्मलचौड़ स्थित उत्तराखंड रत्न,कर्मवीर जयानंद भारतीय स्मृति पुस्तकालय में उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई संगठन के अध्यक्ष विकास कुमार आर्य ने कहा कि ज्योतिबा फुले ने स्त्री-शिक्षा, विधवा-पुनर्विवाह, जातीयता का निर्मूलन ,किसान और कामगारों के जीवन में मूलभूत परिवर्तन लाने जैसे समाज-सुधारों के लिये अपना पूरा जीवन लगाया इसीलिये वे सामाजिक क्रांति के अग्रदूत कहे जाते हैं ,उन्होंने सामाजिक समता ,धार्मिक सहिष्णुता, आर्थिक न्याय और शोषण मुक्ति के लिये जीवन के अंतिम क्षण तक संघर्ष किया , वे आधुनिक महाराष्ट्र के महान समाजचिंतक हुये जिन्होंने किसान,श्रमिक ,बहुजन समाज और महिलाओं पर हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई ,रूढ़िवादी विचारों पर तथ्यात्मक आलोचना का चाबुक चलाया तथा विभन्न जातियों और पंथों के लोगों को भाईचारे की सीख दी ,उनकी धारणा थी कि शिक्षा हर दृष्टि से सभी सुधारों का प्रवेशद्वार है इसलिये उन्होंने शूद्रों,अतिशूद्रों तथा महिलाओं के लिये अपने संघर्षों से शिक्षा के द्वार खुलवाए उनके सभी सामाजिक कार्यों में उनकी धर्मपत्नी माता सावित्रीबाई फुले ने सदैव कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दिया आर्य ने कहा कि शैलशिल्पी विकास संगठन भारत सरकार से माँग करता है कि ज्योतिबा फुले को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से विभूषित किया जाय सेवानिवृत्त DFO धीरजधर बछुवान ने कहा कि ज्योतिबा फुले ने शिक्षा को वंचित समाज तक पहुंचाने के लिये आधारभूत संरचनाओं का निर्माण किया व धार्मिक शोषण के खिलाफ गुलामगिरी जैसी ऐतिहासिक पुस्तक की रचना की इस अवसर पर शिवकुमार, केसीराम निराला,सतेंद्र खेतवाल, श्रद्धानन्द, प्रभुदयाल आदि लोग मौजूद रहे ।