
मानवतावादी भारत के निर्माण के संकल्प का दिन 14 अप्रैल 14 अप्रैल
14 अप्रैल का दिन मात्र एक दिन नहीं रह गया है यह दिन बन चुका है भारत के भावी स्वरूप का दिन, न्याय वादी भारत के निर्माण के संकल्प का दिन, मानवतावादी भारत के निर्माण के संकल्प का दिन, प्रज्ञा करुणा शील का दिन, शोषण मुक्त भारत का दिन, विकासवादी भारत का दिन, वैज्ञानिक और तार्किक भारत का दिन, समता स्वतंत्रता बंधुत्व न्याय पर आधारित भारत का दिन, अमानवीय व्यवस्था से मुक्ति का दिन, हजारों वर्षों से अपने ही देश में धन धरती व ज्ञान तथा शिक्षा सुरक्षा और सम्मान से वंचित भारत के शोषितों पीड़ितों मेहनतकश मूल निवासियों के इन सब अधिकारों की प्राप्ति की आशा का दिन,देश की आधी आबादी नारी के मानवीय अधिकारों का दिन।
प्रश्न उठता है कि आखिर यह एक दिन इतनी विशेषताओं भरा कैसे बन जाता है तब नाम आता है उस शख्स का जिसने अपने छोटे से जीवन को अपने संकल्प अपने सपरिवार त्याग और बलिदान, अपने संघर्ष अपनी विद्वता अपनी तर्क क्षमता के दम पर उपरोक्त विशेषताओं से युक्त भारत के निर्माण की रूपरेखा तैयार की थी और उसी शख्सियत के जन्म लेने का दिन और उस विराट व्यक्तित्व ने अपने इस लघु जीवन में वह सब कर दिखाया जिसके दम पर भारत भूमि के करोड़ों लोगों की असंख्य आकांक्षाएं इस दिन जन्म लेने लगती हैं इस व्यक्तित्व के जन्मदिन के दिन मानवतावादी न्याय वादी और शोषण मुक्त भारत के निर्माण की उम्मीद भी जन्म लेने लगती है फलने फूलने लगती है।
यह दिन हमें यह संदेश देता है यह सिखाता है कि किसी व्यक्ति में या किसी मनुष्य में कितनी क्षमता कितनी संभावनाएं छुपी होती हैं यदि उसके जीवन का कोई निश्चित उद्देश्य हो और वह पूरी इमानदारी और समर्पण के साथ अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु जुट जाए, यह दिन उन तमाम लोगों में जो अलग-अलग कारणों से हताश निराश हो चुके हैं जो लोग कुछ कारणों से विपरीत परिस्थितियों के चलते निराशा के शिकार हो जाते हैं या अपनी समस्याओं के समाधान के लिए किसी चमत्कार की आस लगाए बैठे रहते हैं यह दिन उन सबके लिए प्रेरणादाई साबित होता है, यह दिन मनुष्य के अंदर छिपी शक्तियों जिससे वह स्वयं अनजान होता है उसका बोध कराने का दिन है।
वास्तव में यह दिन आज उन सब लाखों-करोड़ों लोगों के लिए एक सवाल भी खड़ा करता है कि आखिर कैसे इतनी लाखों-करोड़ों डॉक्टर अंबेडकर का अनुयाई होने का दावा करने वालों के कार्यरत होने के बावजूद कैसे समता स्वतंत्रता बंधुत्व न्याय पर आधारित भारत के निर्माण की जिसकी परिकल्पना रूपरेखा और कार्य योजना डॉक्टर अंबेडकर तैयार कर गए थे वह कैसे धूमिल होती जा रही है, डॉक्टर अंबेडकर के लाखों करोड़ों अनुयाई होने के बावजूद भारत वासियों के संवैधानिक मौलिक अधिकार एक-एक कर कैसे समाप्त होते जा रहे हैं, सभी धर्मों पंथों मतों के अनुयायियों की विश्वास और उपासना की स्वतंत्रता पर कैसे हमला हो रहा है, कैसे जन सामान्य की आय से अर्जित राजस्व को एक मत के प्रतीकों के निर्माण में खर्च कर दिया जा रहा है, कैसे एक-एक कर संवैधानिक संस्थाएं निष्प्रभावी व दुष्प्रभावी होती चली जा रही हैं, कैसे नागरिकों के रोजगार स्वास्थ्य और शिक्षा के अवसरों को समाप्त किया जा रहा है, जबकि आज 14 अप्रैल को डॉक्टर अंबेडकर की जय जयकार करने वाले और उनका बखान और गुणगान करने वालों या उनका नाम लेकर लंबे चौड़े भाषण देने वालों की संख्या लाखों में हो चुकी है।
यह सब घटनाक्रम यह दर्शाता है कि आज भले ही डॉक्टर अंबेडकर को मनाने वाले या उनके संघर्षों की व्याख्या करने वाले लोग अनगिनत हो गए हैं लेकिन यह लोग डॉक्टर अंबेडकर के समान संकल्प क्षमता वाले तथा सच्चाई व ईमानदारी से युक्त नहीं हैं, यह लोग डॉक्टर अंबेडकर के समान त्याग और समर्पण और संघर्ष वाले नहीं हैं, यह लोग डॉक्टर अंबेडकर के समान ज्ञानवान और दूरदृष्टि वाले नहीं है, जिस कारण आज एक ओर डॉक्टर अंबेडकर की जय जय कार में बढ़ोतरी हो रही है और वहीं दूसरी ओर उनके संघर्षों और सपनों का भारत बड़ी तेज़ी से ध्वस्त होता जा रहा है।
एडवोकेट डॉ प्रमोद कुमार संपादक वंचित स्वर।