भारत में वर्ण है, जातियां हैं, जातियों में भेदभाव है, असमानता है, शोषण है, परस्पर अन्याय है, परस्पर नफरत है, और यह आज से नहीं है, हजारों साल से है, और यह नफरत, भेदभाव, शोषण, अन्याय, अत्याचार इस कदर गहरा है या खून में समाया है की एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को अपने सदृश मनुष्य मानने को किसी भी कीमत पर तैयार नहीं है वे अनाय जीव जंतुओं पशुओं को अधिकार और सम्मान देते आ रहे हैं और भी देने को तैयार है लेकिन अपने जैसे दूसरे मनुष्य को नहीं और भी वे इस व्यवस्था को मजबूत करना चाहते हैं चिरस्थाई बना देना चाहते हैं इसके लिए कुछ भी गढ़ने को तैयार है किसी भी प्रकार से भय,भ्रम,झूठ,पाखंड का सहारा लेने को तैयार हैं हजारों साल से लेते आ रहे हैं और हजारों साल से इस व्यवस्था के चलन में रहने से यह कुव्यवस्था इस कदर लोगों के दिल, दिमाग, आचार, व्यवहार में समा गई है कि वे इस प्रकृति प्रदत्त या स्वाभाविक और स्थाई मान बैठे हैं। और ऐसा मानने वाले ज्यादातर वे लोग भी हैं जो अन्याय, अपमान, शोषण, और ज्यादती के शिकार होते हैं। और वे लोग भी हैं जो जाने अनजाने अन्याय,अत्याचार, भेदभाव, शोषण, अपमान, करते आ रहे हैं। हैं चंद लोग ऐसे भी हैं जो इसके पीछे की सच्चाई को जानते हैं कि यह कुव्यवस्था उनमें पूर्वजों द्वारा निर्माण की गई है ताकि वे श्रेष्ठ बने रहे, ताकि उन्हें कुछ करना ना पड़े और वे इन नादान, निरीह बना दिए गये लोगों के शोषण के दम पर अपनी वर्चस्वता और संपन्नता बनाए रखें, और इनकी अज्ञानता का लाभ उठाकर उनकी आने वाली पीढ़ियों भी सम्पन्नता, सर्वोच्चता, वैभवपूर्ण और ऐशोआराम की जिंदगी जीते रहे वही चंद लोग इन शोषित पीड़ितों में से भी समय-समय पर निकलते रहे हैं जो यह जानते हैं कि यह कुव्यवस्था सुनियोजित हैं जानबूझकर कुछ लोगों द्वारा अपना राज चलाए रखनें के लिए बनाई गई है। और वे समय-समय पर अपनी क्षमता, समझ, व ज्ञान के सहारे शेष समाज को इस अज्ञानता, अंधविश्वास, से और शोषण से बाहर निकालने का प्रयास करते रहे हैं और यह संघर्ष हजारों वर्षों से चल रहा है एक तबका दिन- रात मेहनत करके बहुसंख्यक भारत को अज्ञानता, अंधविश्वास, पाखंड, शोषण, के दलदल में धंसाये रखने के लिए दिन-रात परिश्रम करता रहता है नित्य नये- नये उपाय खोजता रहता है। और जाग रहे या जगा रहे लोगों को भी साम, दाम, दंड, भेद, की नीतियों के दम पर परास्त करने हेतु निरंतर प्रयासरत रहता है और दूसरा तबका, जागरूकता व चेतना लाने हेतु अपने जीवन अर्पित करता आ रहा है। यही समझ जब से मुझमें विकसित हुई मैंने भी इस दूसरे तबके के लोगों में शामिल होने का निर्णय लिया जो समझ व ज्ञान मुझे मिला जिसके दम पर मुझे सत्य-असत्य और भारत की बर्बादी के मूल कारणों का बोध हुआ मुझे लगा कि इस छोटे से जीवन के अधिकतम पल मुझे इस चेतना व जागरूकता के अभियान के लिए अर्पित कर देने चाहिए यह मेरे लिए इस जीवन को सफल जीवन के रूप में जी लेने का माध्यम बन गया मुझे लगा कि मैं इस जीवन में जब तक सासें चल सके अधिकतम लोगों को अधंकार से निकाल सकूं अपने जैसे कुछ और लोग तैयार कर सकूं इसलिए मैंने जब जो समझ आया मैं करता ही आ रहा हूं अन्याय व शोषण के प्रतिरोध के रूप से चाहे आंदोलन करने पड़े चाहे चुनाव मैदान में उतरना पड़े चाहे गांव-गांव जाकर गली-गली जाकर मोहल्ला -मोहल्ला जाकर गोष्टी करना पड़े चाहे वकालत को भी माध्यम बनाकर लोगों को न्याय दिलाने का प्रयास किया साथ ही इन सब के अतिरिक्त एक और माध्यम जो समझ में आया वह समाचार पत्र रहा लगा कि इस माध्यम को अगर सशक्त बनाया जाए तो यह हमारे ना रहने के बाद भी चल सकता है और महापुरुषों के जीवन संघर्ष उनके विचार, उनकी नसीहतें तथा शोषित पीड़ितों द्वारा झेलें जा रहे शोषण, उत्पीड़न, को स्वर देने के लिए 17 जुलाई 2011 में “वंचित स्वर” सप्ताहिक की नीव रखी जो 12 वर्ष पूर्ण कर चुका है। तेरहवें वर्ष का प्रथम अंक आपके हाथ में है। एडवोकेट डॉक्टर प्रमोद कुमार