कोटद्वार गढ़वाल की प्राचीन मंडी दुगड्डा के नजदीक स्थित उमथ गाँव में 12 मई 1912 को बलदेव सिंह आर्य का जन्म प्रदेश के मूलनिवासी शिल्पकार परिवार में हुवा था। आपके पिता दौलत सिंह आर्य एक सामान्य कृषक परिवार से थे, बाल्यावस्था से ही उनके अंदर समानता,मानवता कर भाव जागृत होने लगा,तब देश अंग्रेजों के शासन से चलता था,देश में अंग्रेजी राज से स्वतंत्रता पाने के लिये आंदोलन हो रहे थे, आर्य जी गांधी व कांग्रेस के स्वराज्य आंदोलन में कूद पड़े,आंदोलन के दौरान उन्हें कई बार जेलयात्रा भी करनी पड़ी,तत्कालीन समय में गढ़वाल जातिवाद, छुवाछुत से अत्यधिक ग्रस्त था,यँहा के मूलनिवासी शिल्पकार समाज के साथ जातिवाद,छुवाछुत विकराल रूप से ब्यवहार में था, तत्कालीन समय में उच्च जातियों द्वारा शिल्पकार समाज के साथ असमानता का व्यवहार आम बात थी,जिसका एक उदाहरण डोला-पालकी का सवाल था,उस समय शिल्पकार समाज के लोग अपने वर-वधू को शादी के दौरान डोला-पालकी से चाह कर भी नही ले जा सकते थे ,जबकि वही शिल्पकार लोग उच्च जातियों की बारातों की डोला-पालकी को खुद ढोकर ले जाते थे,लेकिन वही शिल्पकार समाज के लोग अपने बच्चों की बारात डोला-पालकी से नही ले जा सकते थे, अगर किसी शिल्पकार ने ऐंसी कोशिश की तो फिर उच्च जातियों द्वारा झुंड बनाकर शिल्पकारों की बारातों पर हमला कर लूटपाट, मारपीट की जाती थी,ऐंसी कई घटनाएं आज भी इतिहास में दर्ज हैं जब शिल्पकारों की बारातों पर हमले हुये मारपीट हुई और बारातें हप्तों,महीनों रुकी रही कई मामले न्यायालय भी पहुँचें,
गढ़वाल में आर्य समाज व कांग्रेस के माध्यम से कर्मवीर जयानंद भारतीय,जैसे समर्पित समाज सुधारक ने शिल्पकार समाज के गंभीर सामाजिक, मानवीय विषयों को लेकर क्रांतिकारी कार्य किये, स्वर्गीय बलदेव सिंह आर्य भी जयानंद भारतीय के साथ शिल्पकार समाज के महान डोला-पालकी के  आंदोलन का नेतृत्व करते रहे और लंबे संघर्षों के बाद शिल्पकार समाज को न्याय मिला। सामाजिक और राजनीतिक संघर्षों ने स्वर्गीय आर्य को लोकप्रिय जननेता के रूप में स्थापित किया भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में उनके कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद भारतीय संविधान के अनुसार बनी पहली केंद्रीय सरकार (प्रोविजनल पार्ल्यामेंट) में आप गढ़वाल के पहले सांसद के रूप में भारत सरकार में शामिल हुये। आप 1950 से 1952 तक संसद सदस्य रहे व बाद में दशकों उत्तरप्रदेश सरकार में मंत्री रहे। आपको उत्तरप्रदेश विधानसभा में 25 वर्षों से अधिक सेवा के लिये तत्कालीन राज्यपाल द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया। 22 दिसम्बर 1992 को लखनऊ स्थित आवास में आपका निधन हो गया, ये कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि गढ़वाल की इतनी महान सामाजिक राजनीतिक विभूति को आज अधिकांश लोग जानते भी नही यँहा तक कि जिस शिल्पकार समाज के सामाजिक, मानवीय अधिकारों के लिये आर्य ने संघर्ष किया वो शिल्पकार समाज भी उन्हें भुला चुका है, वंही जिस कांग्रेस के आर्य जीवनभर सिपाही बने रहे वो कांग्रेस भी उनके जाने के बाद उनकी स्मृतियों को संजोने में नाकाम रही,उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद कांग्रेस 2 बार सत्ता में रही लेकिन कांग्रेस ने अपने इतने महान नेता के नाम पर कोई भी ऐंसा पत्थर नही लगाया, जँहा पर लोग उन्हें श्रद्धांजलि दी सकें। गढ़वाल के द्वार कहे जाने वाले कोटद्वार में उनके नाम का कोई स्मारक न होना कई सवाल खड़े करता है। 

 
                         
  
  
  
  
  
 