कोटद्वार उत्तराखंड भाषा संस्थान द्वारा कल घोषित किए गए साहित्य सम्मान में भी वंचित वर्गों को स्वर देने वाले साहित्यकारों की हुई घोर उपेक्षा। भाजपा सरकार का सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वाश एक बार फिर सिर्फ जुमला साबित हुआ, मैं व्यक्तिगत रूप से पौड़ी जनपद के मूलनिवासी, गढ़वाली भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार एवं शिक्षक महेशानंद व उनके साहित्य से भलीभांति परिचित हूं, उनका रचा साहित्य समाज के वंचित उपेक्षित व सदियों से मानवीय असमानता का दंश झेल रहे लाखों लोगों के स्वरों का प्रतिनिधित्व करता हैं। लेकिन दुर्भाग्य से उत्तराखंड सरकार के भाषा संस्थान ने शिक्षक महेशानंद जैसे संवेदनशील साहित्यकार को इस सम्मान से वंचित रखकर समस्त वंचित वर्गों की अवहेलना की है। उत्तराखंड भाषा संस्थान द्वारा अनुसूचित जाति के साहित्यकारों को भाषा संस्थान द्वारा घोषित विभिन्न सम्मानों से उपेक्षित किए जाने में स्पष्ट रूप से भेदभाव नजर आता है, जिसके लिए मैं व्यक्तिगत रूप से एवं उत्तराखंड प्रदेश के मूलनिवासी शिल्पकार समाज के समग्र विकास को समर्पित शैलशिल्पी विकास संगठन की ओर से अपना विरोध दर्ज करते हुए, प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से निवेदन करता हूं कि वे उत्तराखंड भाषा संस्थान द्वारा घोषित इन सम्मानों पर पुनः विचार करें एवं इन सम्मानों में उत्तराखंड प्रदेश के मूलनिवासी शिल्पकार समाज (अनुसूचित जाति) से संबंधित साहित्यकारों को भी ससम्मान उचित स्थान प्रदान कीजिएगा, ताकि इन सम्मानों की गरीमा बनी रहे।