
अल्मोड़ा दिनांक 31 जुलाई 2025 को इतिहास विभाग में आयोजित किए गए प्रेम चंद जयंती समारोह कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो0 ए. एस. अधिकारी, संकाय अध्यक्ष, कला संकाय द्वारा की गई। अपने संबोधन में प्रो. अधिकारी ने बताया 31 जुलाई 1880 के दिन वाराणसी के एक गांव लमही में मुंशी अजायब लाल के घर पर हुआ था। मात्र सात वर्ष की छोटी सी उम्र में प्रेमचंद ने अपनी माँ को खो दिया। वर्ष की किशोरावस्था में पिता भी इस दुनिया से विदा हो गए। ये आघात उनके लेखन में झलकने लगा। प्रेमचंद का वास्तविक नाम ‘धनपत राय श्रीवास्तव’ था। वे अपनी ज्यादातर रचनाएं उर्दू में ‘नबावराय’ के नाम से लिखते थे। 1909 में कानपुर के जमाना प्रेस में प्रकाशित उनकी पहली कहानी-संग्रह ‘सोजे वतन’ की सभी प्रतियां ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर ली थी। भविष्य में ब्रिटिश सरकार की नाराजगी से बचने के लिए ‘जमाना’ के संपादक मुंशी दया नारायण ने उन्हें सलाह दी कि वे नवाब राय नाम छोड़कर नये उपनाम प्रेमचंद के नाम से लिखें, इससे अंग्रेज सरकार को भनक भी नहीं लग पायेगी। उन्हें यह नाम पसंद आया और रातों रात नवाब राय प्रेमचंद बन गये। जीवन के अंतिम दिनों में वह जलोदर रोग से बुरी तरह से ग्रस्त हो गये थे। दिनांक 8 अक्टूबर 1936 को उनका देहांत हो गया। इस काल में देश में स्वतंत्रता की लहर दौड़ रही थी, जिसने युवा प्रेमचंद को गहराई से प्रभावित किया। विशेष रूप से महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन ने उनके विचारों को एक नई क्रांतिकारी दिशा दी। अपने लेखन के माध्यम से, प्रेमचंद ने समाज की कुरीतियों पर करारा प्रहार किया। जाति भेदभाव, लैंगिक असमानता, बाल विवाह, और दहेज प्रथा जैसी ज्वलंत समस्याओं को उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों का विषय बनाया। उनका प्रसिद्ध उपन्यास ‘गोदान’ जमींदारों और साहूकारों द्वारा किसानों के शोषण का जीवंत चित्रण करता है। प्रेम चंद एक मनोवैज्ञानिक की भांति अपने सभी पात्रों की मनोस्थिति एवं भावनाओं को समझते थे। 31 जुलाई, उनकी जयंती, को भारत में राष्ट्रीय लेखक दिवस के रूप में मनाया जाता है। कार्यक्रम में प्रो. एच. सी. जोशी, संयोजक एवं विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र, डॉ. गोकुल देउपा, डॉ. प्रेमा खाती, डॉ. लक्ष्मी वर्मा, डॉ. शालिनी पाठक के साथ विभिन्न कक्षाओं के विद्यार्थी शामिल हुए।