
पीपल्स पार्टी ऑफ इंडिया (डेमोक्रेटिक) के राष्ट्रीय संगठन सचिव और उत्तराखंड प्रभारी एडवोकेट डॉ० प्रमोद कुमार ने गत 9 अक्टूबर को बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम में बीएसपी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती द्वारा उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार की प्रशंसा करने को आश्चर्यजनक बताया उन्होंने कहा कि विगत 75 वर्षों से इस देश के शोषित वंचित तबके एक मजबूत संवैधानिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था मौजूद होने के बावजूद निरंतर शोषण उत्पीड़न और अपने मूलभूत संवैधानिक अधिकारों को हासिल करने के लिए छटपटा रहे हैं स्वतंत्रता प्राप्ति से अब तक इन वर्गों के शोषण उत्पीड़न का सिलसिला लगातार जारी है जिसमें विगत कुछ वर्षों से जब से आर एस एस और भाजपा संचालित सरकार सत्ता में आई है तब से इन वर्गों के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है शिक्षा स्वास्थ्य व अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र निजी हाथों में सौंप कर इन वर्गों को प्रतिनिधित्व विहीन कर दिया गया है जातिगत उत्पीड़न हत्या बलात्कार जैसी अमानवीय घटनाएं इन वर्गों के साथ आम हो गई है उत्तर प्रदेश के चाहे हाथरस की बलात्कार पीड़िता की हत्या का मामला हो या हाल ही में रायबरेली में अनुसूचित जाति के व्यक्ति के पीट पीट कर निर्मम हत्या हो, हजारों सरकारी स्कूल बंद कर इन वर्गों के शिक्षा के दरवाजे बंद कर दिए जाने का मामला हो या आउटसोर्सिंग से भर्ती व निजीकरण द्वारा इन वर्गों को सरकारी सेवाओं से दूर करने का मामला हो, इन वर्गों की पदोन्नति के सभी दरवाजे बंद कर दिए गए हैं अल्पसंख्यक वर्गों का चौतरफा उत्पीड़न व उन्हें उजाड़ने का काम धड़ल्ले से हो रहा है ऐसे में इन्हीं बहुजनों के कल्याण के नाम पर बनी बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष का उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार की तारीफ करना यह दर्शाता है कि बीएसपी सुप्रीमो का अब शोषित वंचित अल्पसंख्यक तबकों व हाशिये के लोगों से कोई वास्ता नहीं है उन्होंने बहुजन विचारधारा को नेस्तनाबूत कर दिया है वह अब हजारों लाखों कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के खून पसीने त्याग बलिदान से निर्मित बहुजन समाज पार्टी की मुखिया बनकर इन वर्गों को सिर्फ गुमराह कर रही हैं इस रैली में लाखों लोग बहुजन नायक कांशीराम के त्याग और बलिदान को याद करते हुए इस उम्मीद से पहुंचे थे कि शायद उनके नायक की उत्तराधिकारी शायद उन पर हो रहे जुल्म ज्यादती और उत्पीड़न पर कुछ बोलेंगी और उन्हें भविष्य की कोई राह दिखाएंगी किंतु बीएसपी सुप्रीमो के समाजवादी पार्टी की आलोचना और भारतीय जनता पार्टी के प्रशंसा से लाखों लोगों को सिर्फ निराशा हाथ लगी डॉ० प्रमोद ने आगे कहा की कि बीएसपी सुप्रीमो द्वारा समाजवादी की पार्टी की आलोचना भी सिर्फ अपने समर्थकों को गुमराह करने के सिवा कुछ नहीं है क्योंकि यदि समाजवादी पार्टी से इतना ही मतभेद था तो 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने सपा के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव क्यों लड़ा इसके अतिरिक्त देश के मुख्य न्यायाधीश के अपमान की घटना हो या अनिल मिश्रा द्वारा संविधान निर्माण को लेकर डॉक्टर अंबेडकर के अपमान का मामला हो या राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का संसद भवन के उद्घाटन के समय अपमान का मामला हो या पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का अपमान हो या देश भर में आए दिन हो रहे जातिगत उत्पीड़न के मामले हो या संविधान और संवैधानिक प्रावधानों पर लगातार हो रहे हमले हो इन सब पर बीएसपी सुप्रीमो की चुप्पी हैरान करने वाली है ऐसा प्रतीत होता है कि इन सब मुद्दों से बीएसपी नेता का अब कोई लेना देना नहीं है। जिस पार्टी नेतृत्व ने अपने ही पाटीं के कद्दावर नेताओं उपराष्ट्रपति रहे जगदीप धनकड़ और कई राज्यों के रह चुके राज्यपाल को नहीं बख्शा जो अपने राजनीतिक जीवन में उनके कसीदे पढ़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। इतना ही नहीं जो पाटीं मनुस्मृति का शासन लाने और हिन्दू राष्ट्र के लिए प्रतिबद्ध हो उसकी मायावती द्वारा प्रशंसा करना निश्चित ही मूल निवासी समाज का बुद्धिजीवी स्तब्ध और अपने को असहज महसूस कर रहा है।भीड़ देख खुश हुआ जा सकता है किन्तु जिस मूल निवासी समाज की संख्या ९०%है, ऐसे भीड़ वाली जमात को शासक होना चाहिए किन्तु वह शासित है। यह हमारे समक्ष एक विचारणीय प्रश्न है।
डॉ० प्रमोद कुमार
अधिवक्ता नैनीताल हाईकोर्ट एवं राष्ट्रीय संगठन सचिव पीपीआई (डी)