विगत दिनों उत्तर प्रदेश विधानसभा में चर्चा के दौरान प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी के मुखिया तथा वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव नेता सदन अर्थात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से यह पूछते नजर आए कि आखिर यह शूद्र कौन हैं। यह सवाल उन्होंने पूछा या सदन में उठाया यह एक सराहनीय बात कही जा सकती है कि आखिर इतने वर्षों की राजनीति करने के बाद उन्हें आखिर वह हैं कौन यह याद तो आया, हालांकि काफी समय बाद याद आया लेकिन फिर भी समय रहते याद आया यह कहा जा सकता है क्योंकि अभी उनके पास काफी समय है राजनीतिक क्षेत्र में देने के लिए।
प्रश्न ये उठता है कि आखिर इतने वर्षों राजनीति करने के बाद उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री का कार्यकाल भी बिता लेने के बाद आखिर उन्हें यह अब याद कैसे आया, इसके पीछे मुख्य रूप से वह चर्चा का दौर है जो इन दिनों भारतीय सामाजिक राजनीतिक परिवेश में छिड़ा हुआ है जिस चर्चा को लगभग 40 वर्षों पूर्व बामसेफ ने शुरू किया था कि इस देश में मेहनतकश शोषित वंचित पिछड़े तबके आखिर कौन हैं, यह आखिर देश और दुनिया की इतनी प्रगति करने के बाद भी अपमानित और प्रताड़ित क्यों हैं, अपने ही देश में मुख्यधारा के नागरिकों में शामिल क्यों नहीं हो पाए हैं, और बामसेफ इसी दिशा में निरंतर विगत 40 वर्षों से इन वर्गों में जन्मे अनेक संतों गुरुओं महापुरुषों द्वारा दिए गए निष्कर्षों व ज्ञान के आधार पर समाज को शिक्षित और प्रशिक्षित करने में जुटा हुआ है।
बामसेफ के उसी प्रशिक्षण शिक्षण का यह असर आज स्पष्ट रूप से भारतीय राजनीति के महत्वपूर्ण नेतृत्व कर्ताओं के मुखारविंद से प्रकट हो रहा है जबकि अब तक इन मुद्दों पर राजनेताओं को खुलकर बोलने से परहेज करते देखा गया है लेकिन कुछ महीनों पूर्व दिल्ली सरकार के मंत्री रहे राजेंद्र पाल गौतम ने 14 अक्टूबर 1956 को डॉ आंबेडकर द्वारा ली गई उन 22 प्रतिज्ञाएं को दोहराया था जो उन्होंने जाति पाति और ऊंच-नीच को की व्यवस्था को त्याग कर बौद्ध धर्म को ग्रहण करते वक्त ली थी, उसके बाद बिहार सरकार के मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर यादव ने एक पुस्तक में लिखी गई अपमानजनक बातों के विरुद्ध मोर्चा खोला था जो इस देश के बहुसंख्यक वर्गों के विरुद्ध लिखी गई थी उसके पश्चात उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री और कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्या भी इन मुद्दों पर खुलकर सामने आए और अपनी आपत्ति प्रकट की उसके बाद उत्तर प्रदेश की विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी यह पूछते नजर आए कि आखिर ये शूद्र कौन हैं।
लेकिन यह सवाल वे जिस पटल पर पूछ रहे थे यदि वहां पूछने के बजाय वे डॉक्टर अंबेडकर द्वारा लिखित “शूद्र कौन थे” “who were shudras” नामक पुस्तक पढ़ लेते तो उन्हें विस्तार से उत्तर मिल जाता है किंतु हो सकता है उन्होंने यह पढ़ी भी हो और उन्हें इस बात की जानकारी भी हो लेकिन वह एक राजनीतिक व्यक्तित्व हैं उनका सदन के पटल पर यह सवाल पूछना उचित ही कहा जा सकता है क्योंकि सदन में पूरे उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाले सत्ता पक्ष और विपक्ष के प्रतिनिधि मौजूद होते हैं, और खासकर उनका सवाल खुद मुख्यमंत्री से था क्योंकि इन्हीं मुख्यमंत्री ने उन्हें शूद्र और नीच होने का आभास कराया था जब उन्होंने मुख्यमंत्री बनते ही पूरे कार्यालय को धुलवाया था और उसका शुद्धिकरण करवाया था तब कहीं अखिलेश यादव जी को यह अहसास हुआ था कि हिंदू धर्म में वह हैं कौन, इसलिए उनसे सवाल करना वाजिब भी कहा जा सकता है।
जिस प्रकार आज अखिलेश यादव, स्वामी प्रसाद मौर्या, चंद्रशेखर यादव, राजेंद्र पाल गौतम सरीखे जनप्रतिनिधि खुलकर सत्य पर बोल रहे हैं सामने आ रहे हैं उसी प्रकार इन जैसे सैकड़ों नेता देश भर की राजनीति में आज भी हैं जो दिन रात जातिवादी व्यवस्था के कारण अपमानित तो होते रहते हैं लेकिन सत्य के साथ खड़े होने का साहस नहीं कर पा रहे हैं लेकिन जितनी भी चर्चा हो रही है उसके लिए बामसेफ नामक संगठनका को श्रेय जाना ही चाहिए कि उनके शिक्षण प्रशिक्षण के सहारे भारत के शोषित पीड़ित वंचित पिछड़े मूल निवासियों को उनकी हकीकत बयान करने का साहस होने लगा है।
एडवोकेट डा प्रमोद कुमार,संपादक “वंचित स्वर “