दिनांक 14 फरवरी 2023 को जिला सूचना अधिकारी अल्मोड़ा द्वारा एक सूचना प्रभारी निदेशक राजकीय संग्रहालय राजेन्द्र सिंह चौहान ने बताया कि निदेशक संस्कृति निदेशालय उत्तराखण्ड द्वारा 1 फरवरी 2023 को विभिन्न समाचार पत्रों में देहरादून से विज्ञप्ति के माध्यम से अनुसूचित जाति के परम्परागत/पेशेवर कलाकारों को निःशुल्क वाद्ययंत्र यथा ढोल, दमाऊ, मसकबीन, रणसिंगा, तुरही, नंगाड़ा, ढाल तलवार आदि प्रदान किये जाने हेतु प्रदेश भर के समस्त जनपदों के पारम्परिक लोक कलाकारेां से 20 फरवरी तक आवेदन पत्र आमंत्रित किये गए थे किंतु कोई आवेदन पत्र प्राप्त नहीं हुआ, उसके पश्चात अनुसूचित जाति के लोक कलाकारों से अनुरोध किया गया कि यदि कोई कलाकार आवेदन करना चाहे तो आवेदन पत्र राजकीय संग्रहालय अल्मोड़ा से प्राप्त कर सकते हैं।
उक्त जानकारी पूरी तरह सिद्ध करती है कि उत्तराखण्ड में शासन प्रशासन द्वारा वर्ण व्यवस्था को धरातल पर लागू किया जा रहा है, प्रश्न यह उठता है कि यदि राज्य सरकार द्वारा कोई योजना हेतु आवेदन पत्र आमंत्रित किए जा रहे हैं तो वह एक वर्ग विशेष से ही क्यों आमंत्रित किए जा रहे हैं क्या वाद्य यंत्रों के वादन में केवल कुछ ही वर्ग निपुण हो सकते है, क्या ढोल दमाऊ तुरही, मसकबीन, को बजाने में केवल अनुसूचित जाति के ही लोग निपुण होते है, या राज्य सरकार इन वर्गों को ही इन वाद्य यंत्रों को बजाने तक सीमित रखना चाहती है, क्या उत्तराखण्ड में निवासरत अन्य जातियों या समुदायों या सभी नागरिकों में से कोई भी नागरिक इन वाद्य यंत्रें को नहीं बजा सकता, यदि कोई बजाना चाहे तो राज्य सरकार उसे प्रतिबंधित करती है।
इसी प्रकार धीरे-धीरे इन असंवैधानिक परम्पराओं को लागू किया जा रहा है, यदि जन मानस द्वारा इन्हें स्वीकार किया जाने लगा तो यहीं परम्पराएं स्थायी बन जायेगी, और यह भी संभव है कि धीरे-धीरे अलग-अलग क्षेत्रें में संचालित योजनाओं के लिए अलग-अलग जातियों से या वर्गों से आवेदन आमंत्रित किए जाने लगेंगे और जाति एवं वर्ण वाद की पक्षधर सरकारें अपनी इन चालों में सफल हो जायेंगी।
अनुसूचित जातियों के हितों के लिए काम करने का दावा करने वाली उत्तराखण्ड में कार्यरत सैकड़ों संगठन व उनके पदाधिकारी को इस प्रकार की साजिश की जानकरी तक नहीं है जानकारी है तो उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नजर नहीं आती और सरकार जाति एवं वर्णवादी समाज व राज्य के निर्माण के अपने मसूबों में सफल हो जाती है, अनुसूचित जातियों के हितैषी होने का दावा करने वाले असंख्य संगठनों राजनेताओं, जनप्रतिनिधायों को यह पता तक नहीं चलता कि किस प्रकार सरकार उन्हें सिर्फ गाने बजाने तय ही सीमित रखने की चाल चल रही है इस प्रकार पूर्व में भी कुछ योजनाएं लागू की गई जिसमें इन वर्गों को औजार मुफ्रत में बाँटे गये जिससे ये केवल मकान बनाने, बर्तन बनाने आदि के अपने परम्परागत पेशों तक सीमित रहें, और इन योजनाओं को भी केवल अनुसूचित जाति के लोगों तक ही सीमित रखा गया था।
यदि सरकार इसी प्रकार इन मनसूबों में सफल होती रही तो एक दिन वे फिर से सभी कार्यों की जन्म आधारित बना देंगे जिसमें कुछ ही लोगों को पठन-पाठन सम्बन्धी कार्य कराये जायेंगे। कुछ ही लोगों से सुरक्षा, सम्बन्धी कार्य कराए जाएंगे कुछ ही लोगों से व्यवसाय कराए जाएंगे और कुछ ही लोगों से अन्य कार्य कराये जायेंगे अर्थात् सभी कार्य जन्म आधारित हो जाएंगे और मनुष्य की प्रतिभा के विकास के सभी मार्ग बंद कर कुछ ही लोगों की सर्वाच्चता का सिद्धांत लागू कर दिया जायेगा।
इसलिए इस प्रकार के असंवैधानिक निर्देंशों, आदेशों योजनाओं का विरोध होना चाहिए, आपत्ति भी की जानी चाहिए, मानव जीवन से जुड़े किसी भी क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को अपनी प्रतिभा व योग्यता सिद्ध करने का असवर मिलना चाहिए, तभी स्वतंत्र स्पर्धा हो पायेगी, स्वतंत्र, स्पर्धा होनेे पर ही किसी भी क्षेत्र का सर्वोत्तम परिणाम सामने आ पायेगा, तभी एक स्वतंत्र समाज, राज्य एवं राष्ट्र का निर्माण हो पायेगा।
एडवोकेट डाॅ प्रमोद कुमार