मैं अपनी माँ के नाम को सदैव जिंदा रखना चाहता हूँ।यह कहना है शिक्षक रवीन्द्र कुमार का।इन्होंने अपनी माँ के नाम को चिरस्थायी बनाने के लिए “सत्य शोधक संस्था” बनाई है जो कि बच्चों की शिक्षा में मदद करती है।अब तक शिक्षक रवीन्द्र कुमार बहुत सारे बच्चों को आर्थिक मदद कर चुके हैं।जिनमें से कुछ बच्चों को रोजगारपरक कोर्स भी करा रहे हैं ।साथ ही बच्चों को विभिन्न स्कूलों में जाकर उनकी जरूरत के अनुसार शिक्षण सामग्री भी वितरित करते हैं।इन्होंने अपनी माँ की स्मृति में विद्यालय प्रवेश द्वार का निर्माण भी कराया है।रवीन्द्र कुमार का कहना है कि उनकी माँ का रूझान भी शिक्षा की ओर बहुत था।उन्होने विकास खण्ड में समाज का प्रतिनिधित्व किया।आज मेरी माँ मेरे पास नहीं है लेकिन मैं अपनी माँ की प्रतिकृति के रूप में यह कार्य कर रहा हूँ। मेरा नेक और मानवीय कार्य ही मेरी माँ के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी । मेरा उद्देश्य है कि कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे।खास बात तो यह है कि ये अपनी संस्था के लिए किसी से कोई आर्थिक सहायता भी नहीं लेते।इनके इस नेक कार्य में इनकी पत्नी शिक्षिका जय गंगा इनका पूरा साथ देती है।ये दोनों अपने वेतन का कुछ हिस्सा गरीब अनाथ बच्चों पर लगाते हैं।शिक्षक रवीन्द्र कुमार कहते हैं कि एक शिक्षक का धर्म है कि वह समाज में तार्किक,वैज्ञानिक,नैतिक और मानवीय शिक्षा का विस्तार करें।