
जौनसार जौनसार में पिछले 50 वर्ष से यहां के लोग जिन नेताओं को अपना खुदा मान रहे हैं, उन कथित मसीहाओं ने यहां की पिछड़ी जातियों और अन्य अनुसूचित जनजाति के लोगों के साथ ठगी की है। यदि इस मामले की न्यायिक जांच हो तो यह विश्व की सबसे बड़ी और अनोखी ठगी साबित होगी। दरअसल, यहां के नेताओं ने बड़ी चालाकी से यह भ्रम फैला दिया कि जौनसार अनुसूचित जनजाति क्षेत्र है जबकि संविधान और संसद के अनुसार उत्तराखंड में एक भी अनुसूचित जनजाति क्षेत्र नहीं है। आरटीआई एक्टिविस्ट विकेश नेगी ने खुलासा किया कि राष्ट्रपति के गजट नोटिफिकेशन के मुताबिक 24 मार्च 1967 से पहले जौनसार में रहने वाले ब्राह्मण, राजपूत और खस्याओं को छोड़कर अन्य जातियों के लोगों को अनुसूचित जनजाति का माना जाएगा। इनमें कोल्टा, डोम, बाजगी, बढ़ई, लौहार, जोगी शामिल हैं। विकेश नेगी का तर्क है कि नोटिफिकेशन में जनसार शब्द है और इसे स्पेलिंग मिस्टेक बता कर जौनसारी कर दिया गया। इसके बाद एसटी की सारी नौकरियां यहां के स्वर्ण जातियों के लोग खा गये और पिछड़ी जातियां उपेक्षित ही रह गयीं। यही नहीं, प्रदेश के सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को भी इस आरक्षण का खमियाजा भुगतना पड़ा। एडवोकेेट नेगी का तर्क है कि 1967 के बाद कोई भी अध्यादेश जारी नहीं किया गया है। इसके अलावा संसद में भी अनुसूचित जनजाति क्षेत्र का कोई विधेयक पारित नहीं हुआ है। आर्टिकल 244 में शेड्यूल पांच और छह में उत्तराखंड को कही भी एसटी का दर्जा नहीं दिया गया है। ऐसे में जौनसार क्षेत्र में जितने भी सर्टिफिकेट ब्राह्मणों और स्वर्ण राजपूतों को जारी हो रहे हैं वो गैरकानूनी हैं।
यह भी बता दें कि संसद में 2003 और 2022 में पूछे गये एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने भी माना है कि जौनसार एसटी क्षेत्र नहीं है। उन्होंने लोकसभा में 12 दिसम्बर 2022 को पूछे गये प्रश्न संख्या 786 का हवाला देते हुए कहा कि सरकार ने इसके जवाब में कहा कि पूरे भारत में 700 प्लस अनुसूचित जनजातियां अधिसूचित हैं। सदन में जानकारी दी गयी कि 1967 के बाद भी उत्तराखंड में सिर्फ भोटिया, बुक्सा, जौनसार, राजी, थारू ही जनजाति हैं और इसमें कोई अन्य नई प्रविष्टि नहीं हुई है। एडवोेकेट विकेश नेगी के अनुसार अब वह इस मामले को हाईकोर्ट की शरण में ले जाएंगे।