रामनगर। महिला दिवस की सन्ध्या पर सावित्रीबाई फुले सांयकालीन स्कूल में एक भव्य कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।कार्यक्रम में उपस्थित महिलाओं ने महिला दिवस के इतिहास पर बातचीत रखने के साथ साथ अपनी समस्यायों पर भी बातचीत रखी।महिलाओं का मत था कि आजादी के 75 साल बाद आज भी महिलाएं चाहे वे किसी भी धर्म,जाति, सम्प्रदाय की हों दोयम दर्जे की नागरिक ही समझी जाती हैं।कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए महिलाओं से सामूहिक रूप से लड़ना है भाई ये तो लम्बी लड़ाई है ,जागो रे बहना जैसे अनेक गीत प्रस्तुत किये।विद्यालय की शिक्षिका अंजलि रावत ने महिला दिवस के इतिहास पर जानकारी देते हुए बताया कि अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर, यह दिवस सबसे पहले २८ फ़रवरी १९०९ को मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखिरी इतवार के दिन मनाया जाने लगा। १९१० में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना था, क्योंकि उस समय अधिकतर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था।१९१७ में रूस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। ज़ार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया। उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनों की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक १९१७ की फरवरी का आखिरी इतवार २३ फ़रवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन ८ मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। इसी लिये ८ मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।प्रसिद्ध जर्मन एक्टिविस्ट क्लारा ज़ेटकिन के जोरदार प्रयासों के बदौलत इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस ने साल 1910 में महिला दिवस के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप और इस दिन पब्लिक हॉलीडे को सहमति दी। इसके फलस्वरूप 19 मार्च, 1911 को पहला महिला दिवस ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और जर्मनी में आयोजित किया गया। हालांकि महिला दिवस की तारीख को साल 1921 में बदलकर 8 मार्च कर दिया गया। तब से महिला दिवस पूरी दुनिया में 8 मार्च को ही मनाया जाता है।
गुंजन देवी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि महिलाओं के साथ आज भी भेदभाव जारी है।तय किया गया कि भविष्य में स्थानीय स्तर पर महिलाओं की समस्यायों की जानकारी लेते हुये उनके निराकरण के लिए पहलकदमियां भी ली जाएंगी।
उपस्थित समुदाय को आयोजक मण्डल द्वारा महिलाओं के जीवन को केंद्रित कर बनी गीतांजलि राव की फ़िल्म प्रिंटेड रेनबो भी दिखाई।इस एनिमेटेड फ़िल्म में निर्देशिका ने महिलाओं की वास्तविक जीवन व उनके जीवन के सपनों को शानदार ढंग से उकेरा है।केनेडियन फिल्मकार नॉर्मन मैक्लेरन की फ़िल्म नेबर्स भी दिखाई गई। युद्ध विरोधी मानसिकता की यह फ़िल्म ऐसे दो पड़ोसियों की कहानी है जो एक फूल को लेकर लड़ पड़ते हैं और अंत तक स्वयम को पूरी तरह बर्बाद कर लेते हैं।कमला रावत की अध्यक्षता ,कशिश के संचालन में सम्पन्न उपरोक्त कार्यक्रम में ग्रामन प्रधान ताहिर हुसैन, नवेन्दु मठपाल,सुमित कुमार,आरजू सैफी,तुलसी देवी, सीमा देवी, अनिता देवी, पिंकी देवी, इंद्रो देवी, अंजलि देवी,बेगम अफसाना सिद्दकी,सोनम सिद्दकी, प्रेमवती देवी, रिंकी देवी, डोली देवी, गोरा देवी, मीना देवी, शांति देवी, पूनम देवी, ममता देवी, दौजा देवी, नेहनी देवी, विमलेश देवी, प्रेमा देवी, सावित्री देवी, जमना देवी, सोनिया, पिंकी, चाहत मौजूद रहीं।